Monday, December 28, 2009

The eternal breakup


मुझे नहीं भाता तुम्हारा उभयचर व्यक्तित्व.

कभी तो अठखेलियाँ करती हुयी

जगा जाती हो अगणित इच्छाएं

औ कभी छोड़ जाती हो नितांत अकेला

तुम्हारे आमद तक...........

जर्द पत्ते गिनने को,

वीरान रस्ते खंगालने को,

सरायिकी गीतों का मर्म समझने को,

ट्रेन की बेफिजूल बहसों का हिस्सा बनने को,

अहमको की बातो में

हाँ में हाँ मिलाने को,

दीवानावार ढूंढता हूँ तुम्हे..............

कीट्स के गीतों में,

साइड लोअर्स की सीटों में,

शायिरों की बातों में,

पूरे चाँद की रातों में ,

गाँव वाले मेले में
बरगदों के झूले में

या फिर वहां जहाँ

तुम छूट गए थे मुझसे .

गुजस्ता वक्त के साथ,

भूलने लगता हूँ तुम्हे

तभी टूट जाती है तुम्हारी शुसुप्तावस्था ।

और औचके से आते हो तुम

उसी किशोरवय अठखेलियों के साथ

जगाने कों मेरी दमित इच्छाएं


एक बार कायदे से विलग ही हो जाते .







Saturday, December 5, 2009

I=F/T

तब जबकि तुम नही थे ॥

मैं स्कूली किताबों मे गर्क था

इतना कि आँखें ख़ुद को

यतीम मान बैठीं थीं

खैर! एक शै तब भी

मेरे समझ के बाहर थी

आवेग

"यह किसी चीज पर

बहुत कम समय मे लगे

बल कि प्रतिक्रिया है "

फ़िर तुम आयीं

बहुत थोड़े समय के लिए

फ़िर चली गयीं।

अपने भीतर कुछ महसूस किया

फ़िर इस "कुछ" कि आदत हो गई।

अब जबकि तुम नही हो

एक दिन पड़ोसी के लड़के ने मुझसे पुछा

भइया ! what is impulse ?

और मुझे बे साख्ता तुम याद आ गई

सच है !

कुछ तालीम किताबों से नही

अज़ाबों से मिलती है।

Wednesday, November 11, 2009

दर्स ए मुहब्बत ( asset of love )


तुम्हे वह रसोई याद है ?

सरकारी क्वार्टर की छोटी सी रसोई।

याद है - मैं तुम्हारी रसोई मे बैठा अल सुबह

कितनी अनरगल बातें कर रहा था .

क्रिकेट,फिल्म, पॉलिटिक्स

जाने क्या क्या ।

याद है- मेरे जाने की ख़बर सुन कर

कितनी ही देर से तुम चुपचाप

प्याज़ के बहाने आंसू बहा रही थी

और मैं कम अक्ल इस मुगालते मे,

कि तुम मुझे सुन रही हो
तभी दफअतन घूम कर

तुम मुझसे लिपट गयीं

और बे तहाशा रोने लगीं. याद है

तुम्हे चुप कराने कि सारी कवायद बेकार।

याद है .

तुम्हे ख़ुद से अलग करते वक्त मैंने देखा की

कि मेरे बाएं सीने पर

तेरहवीं पसली के पास्

नमकीन पानी का एक सोता खुल गया है ।

आज एक अरसा बीत गया है

तुम्हारे आंसू जम गए हैं , मिटते ही नही

थम गये है हटते ही नहीं


जानती हो क्यूँ ?

तेरहवीं पसली के नीचे,

ठीक नीचे

दिल होता है ना .

Monday, November 9, 2009

लविन्ची कोड .


(1) ट्रेन आने मे अभी दो घंटे है । मैं सो जाऊँ?

कहाँ?

तुम्हारे काँधे पर ......और कहाँ बेवकूफ।


(2) बताओ तो । तुम्हारी पीठ पर उँगलियों से मैं क्या लिखा?

पता नही ?

तुम अनपढ़ तो नही हो !


(3) मेरीआँखों मे देखो ।

अरे ?

क्या दिखा?

लाल हो गए हैं ।

जाहिल।

(४) ट्रेन आ जायेगी पटरी से हटो .

एक मिनट ।

काली पटरी पर कोयले से इबारत ! तुम इतने समझदार बचपन से हो ?

हम्म।

वैसे लिख क्या रहे हो?

लविन्ची कोड .


9 साल बाद...................

तुम्हे एक बात बतानी थी।

बोलो।

कहीं पढ़ा था.......... लिख के मांगी हुयी मन्नतें सच नही हुआ करतीं

( Thank you AMOL, for permitting me to use your photo graph.)
चित्र - अमोल के ऑरकुट प्रोफाइल से साभार । पीछे दीखता चेहरा भी उन्ही का है .




Tuesday, November 3, 2009

A Discarded Poetry.


मुफलिसी
की इन्तिहाई है
मेरे हिस्से रिदा नही आती.
रंज हर रोज मारती है मुझे
मुझको फ़िर भी कज़ा नही आती .
तुम मुझे अब भी याद करते हो
हिचकियाँ बेवजा नही आतीं.
जिंदगी से बड़ी सज़ा हो कोई
रास अब ये सजा नही आती .
वक्त औ दूरियां सब अपनी जगह
हमारे दरमियाँ नही आती ।

मुफलिसी - गरीबी
रिदा-चादर
कज़ा-मौत

Sunday, November 1, 2009

उन्स


तुम्हारी नजर की रहबरी पे चलते रहे

तभी तो मुश्किलों मे रास्ते निकलते रहे ।

चाँद की वो परी है तुम्हारी दुल्हन

माँ के किस्सों को हम सच समझते रहे ।

तू हमारी पतंग काटता ही रहा

और हम थे कि, मांझे बदलते रहे ।

तुमसे बिछडे तो थोड़े सयाने हुए

ठोकरें जब लगी ख़ुद संभलते रहे

"सत्य " आँहों का तेरे असर तो हुआ

बाम पर रात भर वो टहलते रहे .


रहबरी- guidance

बाम- छत

Monday, October 19, 2009

THE APPARENT CHANGES



मैं अक्सर सोचता हूँ खिल्वतों मे


नाम किसका था तेरी मन्नतों में।


मेरा ही जिक्र है अब कू ब कू में


मुद्दा ऐ बहस हूँ अब दोस्तों में ।


रात कल भी कोई साया सा गुजरा


रात कल भी गुजारी करवटों में ।


तुम भी क्यूँ ढूँढ़ते हो एक ही शब्


रात आती है ऐसी मुद्दतों में।


"सत्य" अब हो गया है बेहिस सा

हकपरश्ती थी जिसकी आदतों में .

(खिलवत-अकेलापन ,तन्हाई )

(कू ब कू -हर गली में )

( बेहिस-भावनारहित)

हकपरश्ती- to fight for other's right

Tuesday, October 13, 2009

रात, चाँद और हम


तू मेरे गम में साथ चलता है

तू मेरी हर खुशी में ढलता है ।


दिल की नादानियाँ तो जायज हैं

जेहन भी चाँद को मचलता है ।


तुझको सुनके ही जान आती है

तुझको सुनके ही दम निकलता है ।


कौन सी बात की कसम दूँ तुझे

तू तो हर बात पे बदलता है ।


आँखें पढ़ लेती हैं तेरे दिल को

जब दुप्पट्टे को तू मसलता है .



(चित्र -गूगल से साभार)

Friday, October 9, 2009

नसीहत



कुछ इस तरह से दफ़न, हम तुम्हारी याद करें


मकान ख़ुद को करें और तुम्हें बुनियाद करें ।



अच्छाइयाँ हर वक्त की अच्छी नहीं ए दोस्त


चलो कि इश्क मे खुद को जरा बर्बाद करें।



तेरा खुदा, तेरा मुंशिफ और तू यक सा


जेहन में कशमकश , अब किसे फरियाद करें।



बदी नेकी की बहस अपनी जगह चलने दें


एक बुलबुल को पिंजरें से हम आजाद करें ।



ये और बात की तुझसे ही सारे दर्द मिलें


मगर मजाल नहीं तुझको हम नाशाद करें

Wednesday, October 7, 2009

मुस्तकबिल..........


क्या पढ़ रहे हो ?
मेरी आँखों पर अपनी हथेली रखते हुए तुमने कहा था ।
नक्श ऐ फरियादी। जानती हो! फैज़ की एक नज़्म है -
"मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग"
इस नज्म ने communism को एक नया स्टैण्डर्ड दिया था ।
सुनोगी?
नहीं। तुम्हारी ये उर्दू फारसी मेरे पल्ले नही पड़ती. तुलसी वाली चाय बनाई है लॉन मे चलो ।


आज २१ फरवरी को तुम्हारा ख़त मिला है।
लिखा है .....
अब फैज़ की ये नज़्म ही तुम्हारा मुस्तकबिल है।
"मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग"



मुस्तकबिल-future

(चित्र गूगल से साभार )

Monday, October 5, 2009

मुझे कह लेने दो .....


नाकामियों की एक नई मिसाल हो गए

शतरंज ऐ जिंदगी की पिटी चाल हो गए ।

राँझा ने जब किया तो फ़िर कहानिया बनी

हमने जो कर लिया तो फ़िर बवाल हो गए ।

तुझे देखने की बात तो सपनो की बात है

तुझको सुने हुए भी कई साल हो गए।

एक मेरे नाम से जो तेरा नाम जुड़ गया

आँखों में सबके चुभता हुआ बाल हो गए

वो कहते फ़िर रहे हैं "नही उनका है जवाब"

गोया लगे है, "सत्य" का सवाल हो गए।

Sunday, October 4, 2009

wake up satya







नतीजा अब के भी, हर बार सा लगता है मुझे



नया मसीहा भी लाचार सा लगता है मुझे।






मैंने जिसकी भी दुआ की, वही मिली न मुझे



ये खुदा भी कोई नादार सा लगता है मुझे ।






मैली चादर,ऊँघता पंखा,फर्श पे टूटा कॉफी का कप



मेरा कमरा भी अब बीमार सा लगता है मुझे।






हर वो शख्श जो अपने गम को जब्त करता है



हर वो शख्श एक फनकार सा लगता है मुझे।






हमेशा क्यूँ तेरे हक की ही बात करता है



मेरा दिल भी तो अब गद्दार सा लगता है मुझे






नादार-garib,pennyless
(image from google)


Saturday, October 3, 2009

Addicted

तुम्हारी रसोई वीरान पड़ी है .
कोई बाईस घंटे बाद ख्याल आया ,
कि मैंने खाना नही खाया
एक अफ्सुर्दगी छा गई
तुम्हारी बात याद आ गई
"डॉक्टर ने दही मना किया है
बगैर रायता, खाने की आदत डालो"

एक सच कहता हूँ :
"मुझे रायता कि नही, तुम्हारी आदत थी ".

Thursday, October 1, 2009

अनमना सा कुछ

"तुम्हारी भूलने की आदत कब जायेगी ? "
तुम्हारे हथेली पे तुम्हारे कान के बूंदों को रखते हुए मैंने कहा था ।
"sorry this is the last time" तुमने कहा था .
मगर कहाँ !

तुमने बूंदों को सहेजा और मुझे भूल गई

Wednesday, September 30, 2009

शिकायतें


तेरे आंसू
गंगा का पानी ।

मेरे आंसू
हरदम बेमानी ।

टूटी चुडिया
तेरी निशानी ।

सोहिनी राँझा
असल कहानी।

कसमे वादे
सब नादानी।

रिश्ता जन्मो का
बातें बचकानी।

अपनी मुहब्बत
शायद रूहानी।

तेरे लब
मेरी पेशानी।

फ़िर तू बदला
कैसी हैरानी।


बेफिजूल ( इसे न पढ़ें )

वैसे ही तुम्हे कुछ याद नही रहता
सो याद दिला देता हूँ
(गैर जरुरी बातें याद ही कहाँ रहती हैं )
तुम्हारे लॉन मे बैठा चाय का इंतजार कर रहा था
ग़लत ! शायद तुम्हारा इंतजार कर रहा था
(मैं ख़ुद से भी झूठ बोलने लगा हूँ)।
तभी तुमने पीछे से आकर कहा- चाय लो
तुम्हारे एक हाथ मे जाफरानी कप
और दूसरे हाथ मे अख़बार था
तुमने मुझे चाय दी और ख़ुद
अख़बार देखने लगी
मैंने कहा चाय अच्छी बनी है
तुम अखबारमे मशरूफ रहीं
फ़िर अचानक बोल पड़ीं
आज सप्तमी है न बताओ तो
आज माँ के कौन से रूप की पूजा होती है
तुमको अपलक देखते हुए कहा था
"मैं भगवान मे नही मानता "
तुम्हे मानना चाहिए और एक दिन मानोगे जब
हम ...........................

आ के देख लो

मैं मन्दिर जाने लगा हूँ .

Tuesday, September 29, 2009

इल्तिजा..




पढ़ते रहते हैं कहीं तेरी ख़बर मिल जाए

लिखते रहते हैं कहीं तुमको ख़बर हो जाए ।

गमे दुनिया,गमे जानाँ, गमे हस्ती के बाद

और क्या चाहिए बस यूँ ही बसर हो जाए ।

दुआ को हाथ उठाने मे कोई हर्ज नही

ना जाने कब दुआओं मे असर हो जाए ।

गैरों पे होती है जो आपकी निगाहे करम

ये इनायत कभी हम पर भी नजर हो जाए ।

कभी तो साथ चलो काँटों भरे राहों पर

कुछ मुख्तसर ये तवील सफर हो जाए ।

मुख्तसर- छोटा।

तवील- लंबा































Monday, September 28, 2009

तशनगी..... the thirst


जिस्म मे बे शक्ल सा नश्तर उतर जाता है तब

वो आशना चेहरा ख्यालों मे उभर आता है जब ।


पूछिये मत हाल मेरे गैरत ओ पिन्दार का

बात से अपनी हमेशा वो मुकर जाता है जब ।


अपनी ही आँखों मे थोड़ा और गिर जाता हूँ मैं

आजकल ऑंखें बचाकर वो गुजर जाता है जब ।


तब गुमाँ होता है मैंने आज भी कुछ खो दिया

याद मे तेरी निकल अन्तिम पहर जाता है जब ।


तब दुआ ही काम आती है मरीज ऐ हिज्र को

खाली दवा ओ शफा का हर असर जाता है जब ।


आशना- parichit

गैरत ओ पिन्दार- स्वाभिमान

दवा ओ शफा-medicine and treatment


Thursday, September 24, 2009

वक्त ऐ रुखसत


वक्ते रुखसत काम ये अदना सा कर जाता
एक दफा पीछे पलट कर देख कर जाता ।

कलम जो ना साथ होती तो किधर जाता
लिख नही पाता तो शायद घुट के मर जाता ।

ये तुम्हारी भूल थी, माना है तुमने, शुक्र है
वरना ये इल्जाम भी तो मेरे सर जाता ।

है टूटने का शौक मुझको किस्तों किस्तों मे
तुम जो ना मुझको पिरोते तो बिखर जाता ।

तेरे कूचे मे गुजारी मैंने अपनी एक उम्र
कौन सा चेहरा मैं लेकर अपने घर जाता

Wednesday, September 23, 2009

फ़िर वही तलाश ..............


तेरी बातें,तेरी यादें, तेरे ख़त,तेरी तलाश

मेरे घर के साथ ही सुपुर्द ऐ आतिश हो गईं ।


दिल बिका मेरा फकत कुछ कौडियों के मोल से

फक्र करते थे बहुत, लो आजमाईश हो गयी ।


तब कहा करते थे उसकी आंखों मे है सादगी

अब कहा करते हो मेरे साथ साजिश हो गई ।


उनका था ये कौल तेरे सामने न आयेंगे

आज ये कैसे मगर उनकी नवाजिश हो गई ।


रो दिया था आस्मां भी सुन के मेरी दास्ताँ

जैसे ही मैं चुप हुआ वैसे ही बारिश हो गई ।




Tuesday, September 22, 2009

नीयति

मानता ख़ुद को खुदा मैं तुमको पा लेता अगर
तुमने मुझको रास्ते में छोड़कर अच्छा किया ।

प्यार में बंधन नही है जो मैं तुमको बाँध लूँ
प्यार का तुमने सलासिल तोड़कर अच्छा किया ।

मंजिलें जो ना मिलें तो हमसफ़र किस काम का
तुमने मुझसे राहें अपनी मोड़कर अच्छा किया ।

एक तेरे बाद से ही नींद अब आती नही
रतजगों से साथ मेरा जोड़कर अच्छा किया ।


तुम नही जाते तो कैसे ढूढ़ पाता 'सत्य' को
तुमने मेरी रूह को झंझोड़ कर अच्छा किया ।

सलासिल- जंजीर, बेडियाँ

तेरे बगैर

ख़ुद की लगायी आग मे जलता रहा तेरे बगैर
आवारगी की राह पर चलता रहा तेरे बगैर ।

तुमने मुझको ढाल कर रखा था मेरी शक्ल मे
जाने किस किस शक्ल मे ढलता रहा तेरे बगैर।

तुम बताकर जो चले जाते तो कोई हर्ज़ था?
दर्द ये ही फांस बन खलता रहा तेरे बगैर ।

तुम हो तनहा और उसपर सैकडों दुश्वारियां
मैं तो बस इस सोच मे गलता रहा तेरे बगैर ।

ख्वाहिशें जो तुमसे मिलने की कभी दिल मे उठीं
दिल को तेरी याद से छलता रहा तेरे बगैर ।


Sunday, September 20, 2009

an emotional fool.............

बाहम शनाश लोगों में तेरी बात जब भी आ गई

तेरा जिक्र भी न कर सका, मै और मेरी लाचारियाँ ।


जो भी मिला उसने कहा उसका यकीन मत करो

फ़िर मुझे भली लगीं तेरी आँखों की अय्यारियाँ


तेरे पहले भी तो कम न थी जिंदगी की तल्खियाँ

तेरे बाद और भी बढ़ गयीं जीस्त की दुशवारियाँ


मुझे ठण्ड से परहेज है और सर्दियों से दुश्मनी

दिल के मगर करीब है यादों की बर्फ-बारियाँ


उम्र से पहले ही क्यूँ, ये तुमपे कैसे आ गयीं

आंखों के नीचे तीरगी और माथे पे ये धारियां


बाहम शनाश-दोनों को जानने वाले

तीरगी-darkness






तंज़


अभी भी सामने उसके छिटक जाती है नजर

न आया अब भी मुझे उससे बोलने का हुनर ।


अभी भी राज ऐ दिल उसको बता नही पाया

कोई मजाक नही राज खोलने का हुनर ।


सबको बख्शी है खुदा तूने आदमी की परख

मुझे भी कर अता आँखों से तोलने का हुनर ।


तुम अपने याद के नक्शे मिटा न पाओगे

मैं जानता हूँ लफ्ज ओ वक्त घोलने का हुनर ।


कि जिस तरह से सिखाई थी सलीका ऐ वफ़ा

उसी तरह से सिखाना था भूलने का हुनर .


Wednesday, September 16, 2009

कभी यूँ भी .........


अहबाब पूछते हैं बता कौन था वो शख्स

जिसकी वजह से तू हुआ मशहूर इन दिनों


मुमकिन नही हर बात पहुँचती हो वहां तक

वो शख्श रह रहा है बहुत दूर इन दिनों


मैंने फरेब देखें है उसके कई दफा

पर ये चलन चला है बदस्तूर इन दिनों


उसकी भी परेशानियाँ कुछ कम तो नही है

मैं भी हूँ पशेमान ओ मजबूर इन दिनों


दरमान अगर है तो दवा क्यूँ नही देता

तेरा हिज्र बन गया है नासूर इन दिनों


अहबाब-दोस्त

दरमान- दवा देने वाला, मसीहा






खुदकुशी

(चित्र गूगल से साभार )

मैं पहले बोलता था
अब पहरों सोचता हूँ ।

बहुत पढता था पहले
कि अब लिखने लगा हूँ ।

मैं हँसता भी बहुत था
पर अब चुप सी लगी है ।

मै पहले उड़ रहा था
पर अब पर ही नही है ।

जरा सी आग रहती थी
अब बस राख ही है ।

तब थोड़ा हौसला था
पर अब कुछ भी नही है ।

मुझे ये गम नही कि तुमने मुझे छोड़ दिया है ऐ दोस्त
गिला यह है तुमने कहीं का नही छोडा

Saturday, September 12, 2009

खाली हाथ


तेरी जात में भी खलिश रही
यह सोचना मेरी भूल थी
तू मेरा कभी भी रहा नही
मेरी कोशिशें ही फिजूल थी

वो जो आसमान में रहता है
वहीँ बैठा हँसता जो रहता है
मेरी एक अर्जी को छोड़ कर
उसे सबकी अर्ज़ कुबूल थी ।

तेरे खयाल जो आ गए
मैं खुशबुओं में नहा गया
तेरी बात भी क्या बात थी
बस मोगरे का फूल थी ।

तुने मुझको ऐसे फ़ना किया
ज्यूँ मैं रास्ते का गुबार था
मैंने वो भी सर से लगा लिया
तेरे पाँव की जो धूल थी ।

मुझे काफिये की ख़बर नही
ये बहर है क्या नही जानता
मैं वो ही लिखता चला गया
जो जिस्त के माकूल थी ।






Thursday, September 10, 2009

खुशफ़हमी


अपनी चाहत की कुछ मियाद अभी बाकी है

तुम मेरे आने का इमकान बनाए रखना ।


मैं भरम में ही बहुत खुश हूँ, बहुत अच्छा हूँ

और तुम भी मुझे नादान बनाये रखना ।


पहले तन्हाई की आदत थी,अब लत है

मेरे घर को यूँ ही वीरान बनाये रखना ।


तू है जैसा भी,तेरी आँखें बहुत पाक रहीं

अपनी आंखों का कुरआन बनाये रखना ।

इमकान -उम्मीद

Wednesday, September 9, 2009

एक ही भूल

मैं नही कहता था देखो बात ये होकर रहेगी।
हूक ये मुझसे निकल कर तेरे दिल मे जा बसेगी ।

तेरी धुन ने ही सदा मब्हूत घूमता हूँ मैं।
तेरे दीवाने पे एक दिन देखना दुनिया हँसेगी ।

रौशनी बातों की मेरे याद आएंगी तुम्हे भी
तीरगी तन्हाईयों की जब कभी तुमको डसेगी ।

गैर को कुछ भी बता दो मेरी हालत का सबब
सामने मेरे जुबां तो लड़खड़ाएगी फंसेगी ।

दोस्त इस रंग ऐ जहाँ को तुमने देखा ही कहाँ है
आज तो सर पे रखा है, कल यही ताने कसेगी ।

मब्हूत- भ्रमित

तबादला

बद बख्त


जिन्दगी, ख्वाहिशें, मुस्कराहट और तुम्हें

बहुत कुछ खो दिया है तलाश ऐ रोज़गार में।


बेखुदी और बेबसी और बेनियाज़ी के इतर

ये दाग ऐ सुर्ख कैसा है निगाहे ऐ यार मे ।


बैठें हैं गुल्शितां मे तेरी राह देखते

तुमने कहा था आओगे अगले बहार मे ।


तेरी नज़र की रौशनी है मेरा उजाला

जब ही तो मेरे पाँव बचे दस्त ऐ खार मे ।


कोई तो है जो करता है सिजदा तेरे लिए
तू भी तो ऐतबार ला परवरदिगार मे ।



बेनियाज़ी- neglect

दाग ऐ सुर्ख- a red spot

दस्त ऐ खार- काँटों का जंगल, a jungle full of thorns.

गुलिश्तां- lawn








Thursday, September 3, 2009

तुम्हारे बाद .........


रिवाजें निभाने का वक़्त आ गया है

तुम्हे भूल जाने का वक्त आ गया है ।


तेरी बदली नजरों से आहत है फ़िर दिल

कि फ़िर मुस्कुराने का वक्त आ गया है ।


शहर भर में फैलीं है अपनी कहानी

अब नजरें बचाने का वक्त आ गया है ।


मैं घर बार भूला था तेरे फिकर में

कि अब लौट आने का वक्त आ गया है ।


तेरा जाना तय था,सो ये ही हुआ भी

बहल ख़ुद ही जाने का वक्त आ गया है ।


वही बर्क नजरें और माह ऐ सितम्बर

कि फ़िर जख्म खाने का वक्त आ गया है .

Tuesday, September 1, 2009

एक बदनज्म


तुम्हारे घर के जीने से लग के बैठना अच्छा ही लगा था
वहीँ से शाम ढले परिंदों को दूर जाते और फ़िर,
धुंधलके मे खो जाते भी देखा था
"छोटी" की बेमानी बातों पर हंसा भी बहुत.
बगल की छत पर खड़ी लड़की की शोख आँखें भी भली ही लगी थी .
देर तक, न जाने कितनी ही देर तक बैठा रहा ।
अपनी फॅमिली एल्बम देखता रहा
आज माँ बहुत याद आ रही थीं .
नीचे कमरे से रह रह कर तुम्हारी आवाज आ जाती थी
पर तुम नही आयीं ...........................
तुम्हारी सब मजबूरियां जायज है जान
मगर तुमने ये कभी सोचा की,
जाने कितने काले कोस चल के कोई तुमसे,सिर्फ़ तुमसे मिलने आया था
परिंदे मेरी छत से भी दिखतें हैं

जीना - stairs

Monday, August 31, 2009

love......... opium of life


मुझसे मत पूछ आजकल की ख़बर
मैं तो माज़ी में जिया करता हूँ ।



जब तुम्हे भूल ही नही सकता
क्यूँ ये कोशिश ही किया करता हूँ ।



एक वो रात और लब ए शीरीं
अब भी वो जाम पिया करता हूँ ।



तज़किरा जब हुआ क़यामत का
मैं तेरा नाम लिया करता हूँ .



क्यूँ गया था मैं तेरी गलियों में
ख़ुद को ही दोष दिया करता हूँ .



आप ही जख्म हरे करता हूँ
आप ही जख्म सिया करता हूँ .



माज़ी-past


लब ए शीरीं - sweetness of lips
तज़किरा- mention, जिक्र

Friday, August 28, 2009

पशेमानी......penitence


तेरी आंखों मे रतजगे होंगे

बस येही सोच नींद आई है।


दिन तो बेचा है पेट की खातिर

रात तेरे लिए बचायी है ।


वही शोखी अभी तलक बाकी

आँख लेकिन वो अब परायी है ।


किसको दिखाएँ आब ला पा

सारी दुनिया ही तमाशाई है ।


हुस्न ओ इश्क ओ प्यार क्या

चार दिन की शनाशाई है ।


लो यहाँ से जुदा हुयी राहें

राह तूने भी क्या दिखाई है



आब ला पा-पैर के छाले

शनाशाई - परिचय










Tuesday, August 25, 2009

WHY ME.......



मेरे व्यक्तित्व की ढेरों तहें हैं


और उसके एक तह में घर तुम्हारा।


जो एक अस्तित्व है अज्ञेय मेरा


है उसका एक एक अक्षर तुम्हारा।


मेरा दिल अब भी है तेरी ही जद में


लगा है फ़िर वहीँ नश्तर तुम्हारा.


वो जिसको मैं कहा करता था पत्थर


कहाँ है आज वो इश्वर तुम्हारा.


तुम्हारी आँखें जिसका आशियाँ थी


है वो ही दोस्त अब बेघर तुम्हारा।





Monday, August 24, 2009

दर्द तन्हा है


जो लोग मेरे साथ थे


वो जिनकी मुझे आस थी


लोग भी बदल गए


तुम भी चली गयी प्रिया।


जो हमने देख रखे थे


कितने सहेज रखे थे


वो सारे स्वप्न जल गए


तुम भी चली गयी प्रिया।


तुमको शिकायतें रही


मुझको तलब है नींद की


नींद भी इन आँखों से


अब रास्ते बदल गए


तुम भी चली गयी प्रिया।


मेरे साथ ही होता है क्यों


अब तुमसे मैं क्या क्या कहूँ


खुशियाँ,सुकून,चाय तक


मुझे छोड़ दर असल गए


तुम भी चली गयी प्रिया।


missing you my love.





Saturday, August 22, 2009

दुष्यंत ...तुम्हारे लिए


तुम जिसे ओढ़ते बिछाते थे

वो गजल ही हमें सुनाते थे

हर्फ़ देर हर्फ़ बे नजीर हो तुम

किसी ने सच ही कहा आखिरी कबीर हो तुम।


तुम रहे वक्त से सदा आगे

कोशिशें की , कि कोई तो जागे

कलम कि शक्ल में शमशीर हो तुम

किसी ने सच ही कहा आखिरी कबीर हो तुम ।


बहुत इंसानियत का हक अदा किया तुमने

महज अल्फाज़ से मोज़ज़ा किया तुमने

कभी मोमिन कभी ग़ालिब कभी मीर हो तुम

किसी ने सच ही कहा आखिरी कबीर हो तुम.

Friday, August 21, 2009

THE AFTER EFFECT


मुझको तुम्हारे इश्क ने दीवानगी है कि अता

क्या मैंने होश खो दिए या ये जहाँ बदल गया।


तुमसे जो मिल के हंस लिए तो जख्म हरे हो गए

तुमसे लिपट के रो लिये तो दर्द भी संभल गया ।


तेरी हरेक बात को मैं भुला सका नही आज तक .

लेकिन वो मुड के देखना मेरी जिन्दगी बदल गया ।


मुझको हुआ है ये गुमान तुम भी उदास हो कहीं

जो फूल तुमको पसंद थे उन्हें आज कोई मसल गया ।


मेरी कलम ना छीनिए ये कसूर है दिमाग का

मै जो भी सोचता गया कलम ने वो उगल दिया

Wednesday, August 19, 2009

दिल्ली ( जैसा मैंने समझा)






यहाँ ईसा कि कीमत है
यहाँ इन्सां बिकाऊ है
अजब यह शहर है
इसकी रवायत सीखनी होगी।

यहाँ पर जुर्म गुरबत है
महज बातों मे निस्बत है
जियां ओ सूद आदत है
ये आदत सीखनी होगी।

यहाँ पानी कि कीमत है
फकत पैसा ही जीनत है
नही आती अगर तुमको
तिजारत सीखनी होंगी।

यहाँ शमशीर रिश्तों पर
यहाँ हर चीज किस्तों पर
लफ्ज़ ए इमां किताबी है
कहावत सीखनी होगी ।

रवायत- ढंग, तरीका,
गुरबत- गरीबी
निस्बत - संबंध ,RELATIONS
जियां ओ सूद- PROFIT AND LOSS
तिजारत- BUSINESS
शमशीर- तलवार
लफ्ज़ ए इमां- THE WORD HONESTY.





Tuesday, August 18, 2009

फ़िक्र ओ नजर ( POINT OF VIEW)


खफा मैं बेसबब ही था तुमसे
तुम्हारी अपनी ही मजबूरियां है।

कभी जो फासले थे, अब नही हैं
मगर अब कुरबतों की दूरियां हैं।

बहुत हम दोनों में चाहत है लेकिन
बहुत हम दोनों में मगरूरियां हैं ।

कभी जो खेलती थी धडकनों से
अब उन आँखों में बेनूरियां हैं ।

न हो हैरान कि मै पीता नही हूँ
कि मुझको जीस्त कि मख्मूरियां हें।

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khalish



तुम्हे देखना था जो तुमने न देखा
कोई और देखे तो मुझको असर क्या
जो हासिल किया है वो तुमने दिया है
कोई और दे दे तो शम्श ओ कमर क्या ।

तुम्हारे ही क्लिप से लिखा नाम जिस पर
अब भी खुदे है वो जेर ओ जबर क्या ।

तले जिसके अक्सर, रहे पहरों बैठे
अब भी खड़ा है ,वही वो शजर क्या ।

हैं ये लफ्ज सारे तुम्हारे सहारे
तुम्हारे बिना जान मुझमे हुनर क्या।

है हासिल बहुत कुछ, है मंजिल भी पाई
जो तुम संग न गुजरी तो फ़िर वो सफर क्या.

Sunday, August 16, 2009

तीन वर्ष

BHU college days ॥

ख्याल ए यार कि हर इब्तिदा तो यक सी थी,
नसीम ए सुब्ह, कुछ अख़बार और अवधेश की चाय। (नसीम ए सुब्ह-सुबह की ठंडी हवा)

तुम्हारे साथ गुजारे थे जो बेफिक्री के din,
ना कर वो जिक्र मेरे दोस्त, कि हाय।

लगा करे था कि किसने मजाक कर ड़ाला,
agarche बात पढाई कि कभी आ जाय।

बेसबब बेलौस हंसा करते थे मानिंन्द ए पागल,
के अब तो ढूँढ़ते रहते ही,अमाँ कोई हंसाय।

अता हुए थे जिन्दगी के महज तीन बरस,
जो बच गयी है, सजा है, निपट लिया जाये.
satya a vagrant.......

Sunday, August 2, 2009

Navarambh

प्रारम्भ किसी और की लेखनी से करता हूँ ।

क्या खाक मदावा ए गम ए हिज्र करोगी
तुम मेरी मुहब्बत को समझ ही नही सकती।
जब तक की मुहब्बत की हकीकत को ना समझो
फनकार की चाहत को समझ ही नही सकती।

( मदावा ऐ गम ऐ हिज्र- गम ऐ जुदाई की दवा )
anaam)

मित्रों यह ब्लॉग मेरे अप्रकाशित ( परन्तु शीघ्र प्रकाश्य) कविताओं का सॉफ्ट कॉपी है। आशा है
आपको पसंद आयेगी। आपके कमेंट्स का सदैव स्वागत एवं इंतजार रहेगा

( सत्य व्यास)