Thursday, February 18, 2010

सलासिल

हरेक भागता लम्हा सम्भाल रखा है
बाद तेरे, तुझे लफ्जोँ मे ढाल रखा है

हम सपेरे भी नही, ना कोई फन आता है
ना जाने क्युँ तुझे आस्तीँ मे पाल रखा है

तेरी बातेँ भी रहेँ और तू बा पर्दा रहे
हमने इसका भी हमेशा खयाल रखा है

गफलतेँ तो मिट गयी तुम्हे मिल के
गुजस्ता वक्त का थोडा मलाल रखा है

बिना हमारे, तुम हमारे बाद कैसे हो ?
बडा ही ला जवाब सा सवाल रखा है

Monday, February 8, 2010

तुम्हारे नाम लिखता हूँ.

पूर्णिमा का चाँद जैसे
अनकही फ़रियाद जैसे

रोशनी फैली हुयी सी
बादलों के बाद जैसे

आसमानी पर लगे हों
"फाख्ता" आज़ाद जैसे

बोल हैं ऐसे तुम्हारे
प्यार का रुदाद जैसे

इस धरा पर कैसे आयीं
तुम तो हो परीजाद जैसे

तुमको पाके यूँ लगा कि
पूरी हो मुर आद जैसे

फाख्ता- चिड़िया,bird
रुदाद- कहानी ,statement,tale
इमदाद-प्रशंसा