हरेक भागता लम्हा सम्भाल रखा है
बाद तेरे, तुझे लफ्जोँ मे ढाल रखा है
हम सपेरे भी नही, ना कोई फन आता है
ना जाने क्युँ तुझे आस्तीँ मे पाल रखा है
तेरी बातेँ भी रहेँ और तू बा पर्दा रहे
हमने इसका भी हमेशा खयाल रखा है
गफलतेँ तो मिट गयी तुम्हे मिल के
गुजस्ता वक्त का थोडा मलाल रखा है
बिना हमारे, तुम हमारे बाद कैसे हो ?
बडा ही ला जवाब सा सवाल रखा है
यहीं पे मुक्कद्दर की बात आ गयी है. यहीं पे नसीबों से काम आ पड़ा है. मुझे खोदना है पर्वत से दरिया, तेरे सामने भी तो कच्चा घडा है.
Thursday, February 18, 2010
Monday, February 8, 2010
तुम्हारे नाम लिखता हूँ.
पूर्णिमा का चाँद जैसे
अनकही फ़रियाद जैसे
रोशनी फैली हुयी सी
बादलों के बाद जैसे
आसमानी पर लगे हों
"फाख्ता" आज़ाद जैसे
बोल हैं ऐसे तुम्हारे
प्यार का रुदाद जैसे
इस धरा पर कैसे आयीं
तुम तो हो परीजाद जैसे
तुमको पाके यूँ लगा कि
पूरी हो मुर आद जैसे
फाख्ता- चिड़िया,bird
रुदाद- कहानी ,statement,tale
इमदाद-प्रशंसा
अनकही फ़रियाद जैसे
रोशनी फैली हुयी सी
बादलों के बाद जैसे
आसमानी पर लगे हों
"फाख्ता" आज़ाद जैसे
बोल हैं ऐसे तुम्हारे
प्यार का रुदाद जैसे
इस धरा पर कैसे आयीं
तुम तो हो परीजाद जैसे
तुमको पाके यूँ लगा कि
पूरी हो मुर आद जैसे
फाख्ता- चिड़िया,bird
रुदाद- कहानी ,statement,tale
इमदाद-प्रशंसा
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