Monday, April 19, 2010

कहा सुनी

उस रात,

जब मैं तुम्हे देना चाहता था

तुम्हारे हिस्से कि रोटी

तुम्हारे हिस्से के पैरहन

तुम्हारे हिस्से का मकान ........

तुमने मुझे मार्क्सवादी कहा था

रोटी और बन्दूक की फिलासोफी से अपने पल्ले झाडे थे

और फकत अपने हिस्से का प्यार मांगा था

नासमझ वक्त का बेलगाम दरिया बह गया

तुम चली गयी तो समझौते आ गए

आज की रात

जब मैं तुम्हे नहीं दे सकता

तुम्हारे हिस्से की रोटी

तुम्हारे हिस्से का पैरहन

तुम्हारे हिस्से का मकान

और ना ही तुम्हारे हिस्से का प्यार

तुमने मुझे बुद्धिजीवी कहा है

Tuesday, April 13, 2010

आदतन लिखता हूँ

न पूछ कैसी वजह ए कुल्फत है

तुमको रोना तो मेरी आदत है

"भूल जाओ कही सुनी बातें "

क्या गज़ब आप की नसीहत है

मत हो हैरान की मैं नहीं सोता

निस्फ़ रातों मे तेरी लज्जत है

उसको देखे से ऐसे लगता है

अपनी जैसी ही उसकी हालत है

"सत्य" की बात गर करे कोई

मान लेना की जेहनी ग़ुरबत है

वजह ए कुल्फत- दुःख का कारण

निस्फ़-आधी

जेहनी ग़ुरबत- दिमाग रहित