Wednesday, November 11, 2009

दर्स ए मुहब्बत ( asset of love )


तुम्हे वह रसोई याद है ?

सरकारी क्वार्टर की छोटी सी रसोई।

याद है - मैं तुम्हारी रसोई मे बैठा अल सुबह

कितनी अनरगल बातें कर रहा था .

क्रिकेट,फिल्म, पॉलिटिक्स

जाने क्या क्या ।

याद है- मेरे जाने की ख़बर सुन कर

कितनी ही देर से तुम चुपचाप

प्याज़ के बहाने आंसू बहा रही थी

और मैं कम अक्ल इस मुगालते मे,

कि तुम मुझे सुन रही हो
तभी दफअतन घूम कर

तुम मुझसे लिपट गयीं

और बे तहाशा रोने लगीं. याद है

तुम्हे चुप कराने कि सारी कवायद बेकार।

याद है .

तुम्हे ख़ुद से अलग करते वक्त मैंने देखा की

कि मेरे बाएं सीने पर

तेरहवीं पसली के पास्

नमकीन पानी का एक सोता खुल गया है ।

आज एक अरसा बीत गया है

तुम्हारे आंसू जम गए हैं , मिटते ही नही

थम गये है हटते ही नहीं


जानती हो क्यूँ ?

तेरहवीं पसली के नीचे,

ठीक नीचे

दिल होता है ना .

Monday, November 9, 2009

लविन्ची कोड .


(1) ट्रेन आने मे अभी दो घंटे है । मैं सो जाऊँ?

कहाँ?

तुम्हारे काँधे पर ......और कहाँ बेवकूफ।


(2) बताओ तो । तुम्हारी पीठ पर उँगलियों से मैं क्या लिखा?

पता नही ?

तुम अनपढ़ तो नही हो !


(3) मेरीआँखों मे देखो ।

अरे ?

क्या दिखा?

लाल हो गए हैं ।

जाहिल।

(४) ट्रेन आ जायेगी पटरी से हटो .

एक मिनट ।

काली पटरी पर कोयले से इबारत ! तुम इतने समझदार बचपन से हो ?

हम्म।

वैसे लिख क्या रहे हो?

लविन्ची कोड .


9 साल बाद...................

तुम्हे एक बात बतानी थी।

बोलो।

कहीं पढ़ा था.......... लिख के मांगी हुयी मन्नतें सच नही हुआ करतीं

( Thank you AMOL, for permitting me to use your photo graph.)
चित्र - अमोल के ऑरकुट प्रोफाइल से साभार । पीछे दीखता चेहरा भी उन्ही का है .




Tuesday, November 3, 2009

A Discarded Poetry.


मुफलिसी
की इन्तिहाई है
मेरे हिस्से रिदा नही आती.
रंज हर रोज मारती है मुझे
मुझको फ़िर भी कज़ा नही आती .
तुम मुझे अब भी याद करते हो
हिचकियाँ बेवजा नही आतीं.
जिंदगी से बड़ी सज़ा हो कोई
रास अब ये सजा नही आती .
वक्त औ दूरियां सब अपनी जगह
हमारे दरमियाँ नही आती ।

मुफलिसी - गरीबी
रिदा-चादर
कज़ा-मौत

Sunday, November 1, 2009

उन्स


तुम्हारी नजर की रहबरी पे चलते रहे

तभी तो मुश्किलों मे रास्ते निकलते रहे ।

चाँद की वो परी है तुम्हारी दुल्हन

माँ के किस्सों को हम सच समझते रहे ।

तू हमारी पतंग काटता ही रहा

और हम थे कि, मांझे बदलते रहे ।

तुमसे बिछडे तो थोड़े सयाने हुए

ठोकरें जब लगी ख़ुद संभलते रहे

"सत्य " आँहों का तेरे असर तो हुआ

बाम पर रात भर वो टहलते रहे .


रहबरी- guidance

बाम- छत