ख़ुद की लगायी आग मे जलता रहा तेरे बगैर
आवारगी की राह पर चलता रहा तेरे बगैर ।
तुमने मुझको ढाल कर रखा था मेरी शक्ल मे
जाने किस किस शक्ल मे ढलता रहा तेरे बगैर।
तुम बताकर जो चले जाते तो कोई हर्ज़ था?
दर्द ये ही फांस बन खलता रहा तेरे बगैर ।
तुम हो तनहा और उसपर सैकडों दुश्वारियां
मैं तो बस इस सोच मे गलता रहा तेरे बगैर ।
ख्वाहिशें जो तुमसे मिलने की कभी दिल मे उठीं
दिल को तेरी याद से छलता रहा तेरे बगैर ।
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1 comments:
2nd para accha likha hain
sushma
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