Sunday, August 2, 2009

Navarambh

प्रारम्भ किसी और की लेखनी से करता हूँ ।

क्या खाक मदावा ए गम ए हिज्र करोगी
तुम मेरी मुहब्बत को समझ ही नही सकती।
जब तक की मुहब्बत की हकीकत को ना समझो
फनकार की चाहत को समझ ही नही सकती।

( मदावा ऐ गम ऐ हिज्र- गम ऐ जुदाई की दवा )
anaam)

मित्रों यह ब्लॉग मेरे अप्रकाशित ( परन्तु शीघ्र प्रकाश्य) कविताओं का सॉफ्ट कॉपी है। आशा है
आपको पसंद आयेगी। आपके कमेंट्स का सदैव स्वागत एवं इंतजार रहेगा

( सत्य व्यास)

No comments:

Post a Comment