प्रारम्भ किसी और की लेखनी से करता हूँ ।
क्या खाक मदावा ए गम ए हिज्र करोगी
तुम मेरी मुहब्बत को समझ ही नही सकती।
जब तक की मुहब्बत की हकीकत को ना समझो
फनकार की चाहत को समझ ही नही सकती।
( मदावा ऐ गम ऐ हिज्र- गम ऐ जुदाई की दवा )
anaam)
मित्रों यह ब्लॉग मेरे अप्रकाशित ( परन्तु शीघ्र प्रकाश्य) कविताओं का सॉफ्ट कॉपी है। आशा है
आपको पसंद आयेगी। आपके कमेंट्स का सदैव स्वागत एवं इंतजार रहेगा
( सत्य व्यास)
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