Sunday, May 30, 2010

WHAT'S IN THY NAME



तुम्हारे ज़ाए ने तुम्हे माँ कहा है


आज तुमने पूर्णत्व को छुआ है .


अपने प्रारंभ में तुम किसी के घर की लक्ष्मी हुई.


समझने की उम्र में खुद को फलां की बेटी जाना.


भईया की बहन होने में भी कोई षड्यंत्र नहीं था


सुरक्षा ही थी कदाचित .


स्कूलों में भी हाजिरी के "यस सर" तक सीमित थी तुम .


शीशे में खुद को पहचानने के दिनों में


शोहदों ने कुछ नाम भी दिए होंगे तुम्हे .


(मैंने भी एक नाम दिया था याद है तुमको)


फिर शहनाईयों के शोर ने मोहलत न दी होगी


बहू, दुल्हन या फिर भाभी की आदी हो गयी होगी ।


मगर तुम फिर भी खुश हो क्योंकि,


तुम्हारे ज़ाए ने तुम्हे माँ कहा है
आज तुमने पूर्णत्व को छुआ है.


सुनो मेरा कहा मानो


कि अब तो खुद को पहचानो


और उस दिन से हिरांसा हो


वो जिस दिन पूछ बैठेगा


तुम्हारा नाम क्या है माँ?









Thursday, May 13, 2010

सियाह नसीब

उम्र गुजरी है फकीराना मुहब्बत करते

तेरा ही जिक्र,तेरी फ़िक्र, तेरी आदत करते।

कहें कैसे कि कोई जुर्म ए मुहब्बत न करे

अगर न हमने की होती तो नसीहत करते ।

तेरी शरीर निगाहों ने बदगुमान किया

वगरना हम भला कब चाँद की चाहत करते।

तुम्हारे काँधे के तिल कों तीरगी देते

सियाह नसीब न होते तो हिमाकत करते ।

हमें खबर है हकीकत तेरे बहानों की

ख्याल ए इश्क न होता तो शिकायत करते ।

बदगुमानी मे तेरी बात शरियत समझी

जुनू मे तेरे लिखे कों ही वसीयत करते ।

शरीर -chanchal ,mischievous

तीरगी- darkness,

सियाह नसीब -ill fated, बदनसीब