Wednesday, September 30, 2009

शिकायतें


तेरे आंसू
गंगा का पानी ।

मेरे आंसू
हरदम बेमानी ।

टूटी चुडिया
तेरी निशानी ।

सोहिनी राँझा
असल कहानी।

कसमे वादे
सब नादानी।

रिश्ता जन्मो का
बातें बचकानी।

अपनी मुहब्बत
शायद रूहानी।

तेरे लब
मेरी पेशानी।

फ़िर तू बदला
कैसी हैरानी।


बेफिजूल ( इसे न पढ़ें )

वैसे ही तुम्हे कुछ याद नही रहता
सो याद दिला देता हूँ
(गैर जरुरी बातें याद ही कहाँ रहती हैं )
तुम्हारे लॉन मे बैठा चाय का इंतजार कर रहा था
ग़लत ! शायद तुम्हारा इंतजार कर रहा था
(मैं ख़ुद से भी झूठ बोलने लगा हूँ)।
तभी तुमने पीछे से आकर कहा- चाय लो
तुम्हारे एक हाथ मे जाफरानी कप
और दूसरे हाथ मे अख़बार था
तुमने मुझे चाय दी और ख़ुद
अख़बार देखने लगी
मैंने कहा चाय अच्छी बनी है
तुम अखबारमे मशरूफ रहीं
फ़िर अचानक बोल पड़ीं
आज सप्तमी है न बताओ तो
आज माँ के कौन से रूप की पूजा होती है
तुमको अपलक देखते हुए कहा था
"मैं भगवान मे नही मानता "
तुम्हे मानना चाहिए और एक दिन मानोगे जब
हम ...........................

आ के देख लो

मैं मन्दिर जाने लगा हूँ .

Tuesday, September 29, 2009

इल्तिजा..




पढ़ते रहते हैं कहीं तेरी ख़बर मिल जाए

लिखते रहते हैं कहीं तुमको ख़बर हो जाए ।

गमे दुनिया,गमे जानाँ, गमे हस्ती के बाद

और क्या चाहिए बस यूँ ही बसर हो जाए ।

दुआ को हाथ उठाने मे कोई हर्ज नही

ना जाने कब दुआओं मे असर हो जाए ।

गैरों पे होती है जो आपकी निगाहे करम

ये इनायत कभी हम पर भी नजर हो जाए ।

कभी तो साथ चलो काँटों भरे राहों पर

कुछ मुख्तसर ये तवील सफर हो जाए ।

मुख्तसर- छोटा।

तवील- लंबा































Monday, September 28, 2009

तशनगी..... the thirst


जिस्म मे बे शक्ल सा नश्तर उतर जाता है तब

वो आशना चेहरा ख्यालों मे उभर आता है जब ।


पूछिये मत हाल मेरे गैरत ओ पिन्दार का

बात से अपनी हमेशा वो मुकर जाता है जब ।


अपनी ही आँखों मे थोड़ा और गिर जाता हूँ मैं

आजकल ऑंखें बचाकर वो गुजर जाता है जब ।


तब गुमाँ होता है मैंने आज भी कुछ खो दिया

याद मे तेरी निकल अन्तिम पहर जाता है जब ।


तब दुआ ही काम आती है मरीज ऐ हिज्र को

खाली दवा ओ शफा का हर असर जाता है जब ।


आशना- parichit

गैरत ओ पिन्दार- स्वाभिमान

दवा ओ शफा-medicine and treatment


Thursday, September 24, 2009

वक्त ऐ रुखसत


वक्ते रुखसत काम ये अदना सा कर जाता
एक दफा पीछे पलट कर देख कर जाता ।

कलम जो ना साथ होती तो किधर जाता
लिख नही पाता तो शायद घुट के मर जाता ।

ये तुम्हारी भूल थी, माना है तुमने, शुक्र है
वरना ये इल्जाम भी तो मेरे सर जाता ।

है टूटने का शौक मुझको किस्तों किस्तों मे
तुम जो ना मुझको पिरोते तो बिखर जाता ।

तेरे कूचे मे गुजारी मैंने अपनी एक उम्र
कौन सा चेहरा मैं लेकर अपने घर जाता

Wednesday, September 23, 2009

फ़िर वही तलाश ..............


तेरी बातें,तेरी यादें, तेरे ख़त,तेरी तलाश

मेरे घर के साथ ही सुपुर्द ऐ आतिश हो गईं ।


दिल बिका मेरा फकत कुछ कौडियों के मोल से

फक्र करते थे बहुत, लो आजमाईश हो गयी ।


तब कहा करते थे उसकी आंखों मे है सादगी

अब कहा करते हो मेरे साथ साजिश हो गई ।


उनका था ये कौल तेरे सामने न आयेंगे

आज ये कैसे मगर उनकी नवाजिश हो गई ।


रो दिया था आस्मां भी सुन के मेरी दास्ताँ

जैसे ही मैं चुप हुआ वैसे ही बारिश हो गई ।




Tuesday, September 22, 2009

नीयति

मानता ख़ुद को खुदा मैं तुमको पा लेता अगर
तुमने मुझको रास्ते में छोड़कर अच्छा किया ।

प्यार में बंधन नही है जो मैं तुमको बाँध लूँ
प्यार का तुमने सलासिल तोड़कर अच्छा किया ।

मंजिलें जो ना मिलें तो हमसफ़र किस काम का
तुमने मुझसे राहें अपनी मोड़कर अच्छा किया ।

एक तेरे बाद से ही नींद अब आती नही
रतजगों से साथ मेरा जोड़कर अच्छा किया ।


तुम नही जाते तो कैसे ढूढ़ पाता 'सत्य' को
तुमने मेरी रूह को झंझोड़ कर अच्छा किया ।

सलासिल- जंजीर, बेडियाँ

तेरे बगैर

ख़ुद की लगायी आग मे जलता रहा तेरे बगैर
आवारगी की राह पर चलता रहा तेरे बगैर ।

तुमने मुझको ढाल कर रखा था मेरी शक्ल मे
जाने किस किस शक्ल मे ढलता रहा तेरे बगैर।

तुम बताकर जो चले जाते तो कोई हर्ज़ था?
दर्द ये ही फांस बन खलता रहा तेरे बगैर ।

तुम हो तनहा और उसपर सैकडों दुश्वारियां
मैं तो बस इस सोच मे गलता रहा तेरे बगैर ।

ख्वाहिशें जो तुमसे मिलने की कभी दिल मे उठीं
दिल को तेरी याद से छलता रहा तेरे बगैर ।


Sunday, September 20, 2009

an emotional fool.............

बाहम शनाश लोगों में तेरी बात जब भी आ गई

तेरा जिक्र भी न कर सका, मै और मेरी लाचारियाँ ।


जो भी मिला उसने कहा उसका यकीन मत करो

फ़िर मुझे भली लगीं तेरी आँखों की अय्यारियाँ


तेरे पहले भी तो कम न थी जिंदगी की तल्खियाँ

तेरे बाद और भी बढ़ गयीं जीस्त की दुशवारियाँ


मुझे ठण्ड से परहेज है और सर्दियों से दुश्मनी

दिल के मगर करीब है यादों की बर्फ-बारियाँ


उम्र से पहले ही क्यूँ, ये तुमपे कैसे आ गयीं

आंखों के नीचे तीरगी और माथे पे ये धारियां


बाहम शनाश-दोनों को जानने वाले

तीरगी-darkness






तंज़


अभी भी सामने उसके छिटक जाती है नजर

न आया अब भी मुझे उससे बोलने का हुनर ।


अभी भी राज ऐ दिल उसको बता नही पाया

कोई मजाक नही राज खोलने का हुनर ।


सबको बख्शी है खुदा तूने आदमी की परख

मुझे भी कर अता आँखों से तोलने का हुनर ।


तुम अपने याद के नक्शे मिटा न पाओगे

मैं जानता हूँ लफ्ज ओ वक्त घोलने का हुनर ।


कि जिस तरह से सिखाई थी सलीका ऐ वफ़ा

उसी तरह से सिखाना था भूलने का हुनर .


Wednesday, September 16, 2009

कभी यूँ भी .........


अहबाब पूछते हैं बता कौन था वो शख्स

जिसकी वजह से तू हुआ मशहूर इन दिनों


मुमकिन नही हर बात पहुँचती हो वहां तक

वो शख्श रह रहा है बहुत दूर इन दिनों


मैंने फरेब देखें है उसके कई दफा

पर ये चलन चला है बदस्तूर इन दिनों


उसकी भी परेशानियाँ कुछ कम तो नही है

मैं भी हूँ पशेमान ओ मजबूर इन दिनों


दरमान अगर है तो दवा क्यूँ नही देता

तेरा हिज्र बन गया है नासूर इन दिनों


अहबाब-दोस्त

दरमान- दवा देने वाला, मसीहा






खुदकुशी

(चित्र गूगल से साभार )

मैं पहले बोलता था
अब पहरों सोचता हूँ ।

बहुत पढता था पहले
कि अब लिखने लगा हूँ ।

मैं हँसता भी बहुत था
पर अब चुप सी लगी है ।

मै पहले उड़ रहा था
पर अब पर ही नही है ।

जरा सी आग रहती थी
अब बस राख ही है ।

तब थोड़ा हौसला था
पर अब कुछ भी नही है ।

मुझे ये गम नही कि तुमने मुझे छोड़ दिया है ऐ दोस्त
गिला यह है तुमने कहीं का नही छोडा

Saturday, September 12, 2009

खाली हाथ


तेरी जात में भी खलिश रही
यह सोचना मेरी भूल थी
तू मेरा कभी भी रहा नही
मेरी कोशिशें ही फिजूल थी

वो जो आसमान में रहता है
वहीँ बैठा हँसता जो रहता है
मेरी एक अर्जी को छोड़ कर
उसे सबकी अर्ज़ कुबूल थी ।

तेरे खयाल जो आ गए
मैं खुशबुओं में नहा गया
तेरी बात भी क्या बात थी
बस मोगरे का फूल थी ।

तुने मुझको ऐसे फ़ना किया
ज्यूँ मैं रास्ते का गुबार था
मैंने वो भी सर से लगा लिया
तेरे पाँव की जो धूल थी ।

मुझे काफिये की ख़बर नही
ये बहर है क्या नही जानता
मैं वो ही लिखता चला गया
जो जिस्त के माकूल थी ।






Thursday, September 10, 2009

खुशफ़हमी


अपनी चाहत की कुछ मियाद अभी बाकी है

तुम मेरे आने का इमकान बनाए रखना ।


मैं भरम में ही बहुत खुश हूँ, बहुत अच्छा हूँ

और तुम भी मुझे नादान बनाये रखना ।


पहले तन्हाई की आदत थी,अब लत है

मेरे घर को यूँ ही वीरान बनाये रखना ।


तू है जैसा भी,तेरी आँखें बहुत पाक रहीं

अपनी आंखों का कुरआन बनाये रखना ।

इमकान -उम्मीद

Wednesday, September 9, 2009

एक ही भूल

मैं नही कहता था देखो बात ये होकर रहेगी।
हूक ये मुझसे निकल कर तेरे दिल मे जा बसेगी ।

तेरी धुन ने ही सदा मब्हूत घूमता हूँ मैं।
तेरे दीवाने पे एक दिन देखना दुनिया हँसेगी ।

रौशनी बातों की मेरे याद आएंगी तुम्हे भी
तीरगी तन्हाईयों की जब कभी तुमको डसेगी ।

गैर को कुछ भी बता दो मेरी हालत का सबब
सामने मेरे जुबां तो लड़खड़ाएगी फंसेगी ।

दोस्त इस रंग ऐ जहाँ को तुमने देखा ही कहाँ है
आज तो सर पे रखा है, कल यही ताने कसेगी ।

मब्हूत- भ्रमित

तबादला

बद बख्त


जिन्दगी, ख्वाहिशें, मुस्कराहट और तुम्हें

बहुत कुछ खो दिया है तलाश ऐ रोज़गार में।


बेखुदी और बेबसी और बेनियाज़ी के इतर

ये दाग ऐ सुर्ख कैसा है निगाहे ऐ यार मे ।


बैठें हैं गुल्शितां मे तेरी राह देखते

तुमने कहा था आओगे अगले बहार मे ।


तेरी नज़र की रौशनी है मेरा उजाला

जब ही तो मेरे पाँव बचे दस्त ऐ खार मे ।


कोई तो है जो करता है सिजदा तेरे लिए
तू भी तो ऐतबार ला परवरदिगार मे ।



बेनियाज़ी- neglect

दाग ऐ सुर्ख- a red spot

दस्त ऐ खार- काँटों का जंगल, a jungle full of thorns.

गुलिश्तां- lawn








Thursday, September 3, 2009

तुम्हारे बाद .........


रिवाजें निभाने का वक़्त आ गया है

तुम्हे भूल जाने का वक्त आ गया है ।


तेरी बदली नजरों से आहत है फ़िर दिल

कि फ़िर मुस्कुराने का वक्त आ गया है ।


शहर भर में फैलीं है अपनी कहानी

अब नजरें बचाने का वक्त आ गया है ।


मैं घर बार भूला था तेरे फिकर में

कि अब लौट आने का वक्त आ गया है ।


तेरा जाना तय था,सो ये ही हुआ भी

बहल ख़ुद ही जाने का वक्त आ गया है ।


वही बर्क नजरें और माह ऐ सितम्बर

कि फ़िर जख्म खाने का वक्त आ गया है .

Tuesday, September 1, 2009

एक बदनज्म


तुम्हारे घर के जीने से लग के बैठना अच्छा ही लगा था
वहीँ से शाम ढले परिंदों को दूर जाते और फ़िर,
धुंधलके मे खो जाते भी देखा था
"छोटी" की बेमानी बातों पर हंसा भी बहुत.
बगल की छत पर खड़ी लड़की की शोख आँखें भी भली ही लगी थी .
देर तक, न जाने कितनी ही देर तक बैठा रहा ।
अपनी फॅमिली एल्बम देखता रहा
आज माँ बहुत याद आ रही थीं .
नीचे कमरे से रह रह कर तुम्हारी आवाज आ जाती थी
पर तुम नही आयीं ...........................
तुम्हारी सब मजबूरियां जायज है जान
मगर तुमने ये कभी सोचा की,
जाने कितने काले कोस चल के कोई तुमसे,सिर्फ़ तुमसे मिलने आया था
परिंदे मेरी छत से भी दिखतें हैं

जीना - stairs