( मित्रों से क्षमा । जिनकी इतनी अच्छी पार्टी के बाद मैने सोगवार लिखा)
यहीं पे मुक्कद्दर की बात आ गयी है. यहीं पे नसीबों से काम आ पड़ा है. मुझे खोदना है पर्वत से दरिया, तेरे सामने भी तो कच्चा घडा है.
Tuesday, December 28, 2010
मचान
( मित्रों से क्षमा । जिनकी इतनी अच्छी पार्टी के बाद मैने सोगवार लिखा)
Tuesday, October 19, 2010
न जुनूँ रहा ...न परी रही
देखना तुम्हारी हथेलियों कों,
और बताना झूठे भविष्य ।
सताना तुम्हे और कहना,
कि मरोगी तुम छोटी उम्र मे ही ।
कहना तुम्हारा कि
"जानती हूँ"।
बस ये बता दो कैसे?
चूमना उंगलियाँ और कहना मेरा
कि हठात योग है
किसी फसाद में
विश्वासघात से या फिर
बिना किसी कारण ही।
हंसना तुम्हारा और कहना कि
"फसाद मे मरना
अवसाद मे मरने से
कहीं बेहतर है।"
" और श्वास का टूटना
विश्वास के टूटने से कहीँ अच्छा"।
फिर रुआंसा होना तुम्हारा
और कहना
"मैं तुम्हारे साथ बूढी होना चाहती थी"।
सबकुछ खत्म नहीं हुआ प्रिय...........
बस तुम बिन बूढा होना,
विश्वासघात सा लगता है।
(अवनीश को धन्यवाद...जो मुझे याद दिलाते हैँ कि, लिखना, जिवीत रहने की अनुभुति है)
Tuesday, August 24, 2010
तेरा भईया,तेरा चंदा,तेरा अनमोल रतन
Saturday, July 10, 2010
सवाल ओ जवाब
अच्छा............ मुझे मुआफ कर पाओगे?
Sunday, May 30, 2010
WHAT'S IN THY NAME
तुम्हारे ज़ाए ने तुम्हे माँ कहा है
आज तुमने पूर्णत्व को छुआ है .
अपने प्रारंभ में तुम किसी के घर की लक्ष्मी हुई.
समझने की उम्र में खुद को फलां की बेटी जाना.
भईया की बहन होने में भी कोई षड्यंत्र नहीं था
सुरक्षा ही थी कदाचित .
स्कूलों में भी हाजिरी के "यस सर" तक सीमित थी तुम .
शीशे में खुद को पहचानने के दिनों में
शोहदों ने कुछ नाम भी दिए होंगे तुम्हे .
(मैंने भी एक नाम दिया था याद है तुमको)
फिर शहनाईयों के शोर ने मोहलत न दी होगी
बहू, दुल्हन या फिर भाभी की आदी हो गयी होगी ।
मगर तुम फिर भी खुश हो क्योंकि,
तुम्हारे ज़ाए ने तुम्हे माँ कहा है
आज तुमने पूर्णत्व को छुआ है.
सुनो मेरा कहा मानो
कि अब तो खुद को पहचानो
और उस दिन से हिरांसा हो
वो जिस दिन पूछ बैठेगा
तुम्हारा नाम क्या है माँ?
Thursday, May 13, 2010
सियाह नसीब
उम्र गुजरी है फकीराना मुहब्बत करते
तेरा ही जिक्र,तेरी फ़िक्र, तेरी आदत करते।
कहें कैसे कि कोई जुर्म ए मुहब्बत न करे
अगर न हमने की होती तो नसीहत करते ।
तेरी शरीर निगाहों ने बदगुमान किया
वगरना हम भला कब चाँद की चाहत करते।
तुम्हारे काँधे के तिल कों तीरगी देते
सियाह नसीब न होते तो हिमाकत करते ।
हमें खबर है हकीकत तेरे बहानों की
ख्याल ए इश्क न होता तो शिकायत करते ।
बदगुमानी मे तेरी बात शरियत समझी
जुनू मे तेरे लिखे कों ही वसीयत करते ।
शरीर -chanchal ,mischievous
तीरगी- darkness,
सियाह नसीब -ill fated, बदनसीब
Monday, April 19, 2010
कहा सुनी
उस रात,
जब मैं तुम्हे देना चाहता था
तुम्हारे हिस्से कि रोटी
तुम्हारे हिस्से के पैरहन
तुम्हारे हिस्से का मकान ........
तुमने मुझे मार्क्सवादी कहा था
रोटी और बन्दूक की फिलासोफी से अपने पल्ले झाडे थे
और फकत अपने हिस्से का प्यार मांगा था
नासमझ वक्त का बेलगाम दरिया बह गया
तुम चली गयी तो समझौते आ गए
आज की रात
जब मैं तुम्हे नहीं दे सकता
तुम्हारे हिस्से की रोटी
तुम्हारे हिस्से का पैरहन
तुम्हारे हिस्से का मकान
और ना ही तुम्हारे हिस्से का प्यार
तुमने मुझे बुद्धिजीवी कहा है
Tuesday, April 13, 2010
आदतन लिखता हूँ
न पूछ कैसी वजह ए कुल्फत है
तुमको रोना तो मेरी आदत है
"भूल जाओ कही सुनी बातें "
क्या गज़ब आप की नसीहत है
मत हो हैरान की मैं नहीं सोता
निस्फ़ रातों मे तेरी लज्जत है
उसको देखे से ऐसे लगता है
अपनी जैसी ही उसकी हालत है
"सत्य" की बात गर करे कोई
मान लेना की जेहनी ग़ुरबत है
वजह ए कुल्फत- दुःख का कारण
निस्फ़-आधी
जेहनी ग़ुरबत- दिमाग रहित
Saturday, March 27, 2010
एक SAAUMYA सी गुजारिश
Thursday, March 11, 2010
THE GRAVE
और थोडी सी नम जमीन देख के
दफन कर आया था उन्हेँ.
एक पत्थर रख आया था उपर
एक वचन भी लिया था खुद ही से
कभी न लौट के आने का
इस मजार पे दुबारा।
और जैसे भूल जाता हूँ पौलिसी भरना
बिसर गयी थी यह भी बात.
समय चक्र पूरा हो गया है
और नियती का खेल भी है ...
वहीँ खडा हूँ तुम्हारे साथ
बहुत कुछ बदल गया है ना!
देखो पत्थर को चीरकर
कुछ मोगरे खिल गये है वहाँ
जहाँ दबी पडेँ हैँ कुछ खत,
ट्रेन के टिकट और मैँ ........
चलो कहीँ और चलते हैँ....
जानता हूँ तुम्हे मोगरे पसन्द नहीँ हैँ
मेरे अरमानोँ की तरह .
Thursday, February 18, 2010
सलासिल
बाद तेरे, तुझे लफ्जोँ मे ढाल रखा है
हम सपेरे भी नही, ना कोई फन आता है
ना जाने क्युँ तुझे आस्तीँ मे पाल रखा है
तेरी बातेँ भी रहेँ और तू बा पर्दा रहे
हमने इसका भी हमेशा खयाल रखा है
गफलतेँ तो मिट गयी तुम्हे मिल के
गुजस्ता वक्त का थोडा मलाल रखा है
बिना हमारे, तुम हमारे बाद कैसे हो ?
बडा ही ला जवाब सा सवाल रखा है
Monday, February 8, 2010
तुम्हारे नाम लिखता हूँ.
अनकही फ़रियाद जैसे
रोशनी फैली हुयी सी
बादलों के बाद जैसे
आसमानी पर लगे हों
"फाख्ता" आज़ाद जैसे
बोल हैं ऐसे तुम्हारे
प्यार का रुदाद जैसे
इस धरा पर कैसे आयीं
तुम तो हो परीजाद जैसे
तुमको पाके यूँ लगा कि
पूरी हो मुर आद जैसे
फाख्ता- चिड़िया,bird
रुदाद- कहानी ,statement,tale
इमदाद-प्रशंसा