Monday, August 31, 2009

love......... opium of life


मुझसे मत पूछ आजकल की ख़बर
मैं तो माज़ी में जिया करता हूँ ।



जब तुम्हे भूल ही नही सकता
क्यूँ ये कोशिश ही किया करता हूँ ।



एक वो रात और लब ए शीरीं
अब भी वो जाम पिया करता हूँ ।



तज़किरा जब हुआ क़यामत का
मैं तेरा नाम लिया करता हूँ .



क्यूँ गया था मैं तेरी गलियों में
ख़ुद को ही दोष दिया करता हूँ .



आप ही जख्म हरे करता हूँ
आप ही जख्म सिया करता हूँ .



माज़ी-past


लब ए शीरीं - sweetness of lips
तज़किरा- mention, जिक्र

Friday, August 28, 2009

पशेमानी......penitence


तेरी आंखों मे रतजगे होंगे

बस येही सोच नींद आई है।


दिन तो बेचा है पेट की खातिर

रात तेरे लिए बचायी है ।


वही शोखी अभी तलक बाकी

आँख लेकिन वो अब परायी है ।


किसको दिखाएँ आब ला पा

सारी दुनिया ही तमाशाई है ।


हुस्न ओ इश्क ओ प्यार क्या

चार दिन की शनाशाई है ।


लो यहाँ से जुदा हुयी राहें

राह तूने भी क्या दिखाई है



आब ला पा-पैर के छाले

शनाशाई - परिचय










Tuesday, August 25, 2009

WHY ME.......



मेरे व्यक्तित्व की ढेरों तहें हैं


और उसके एक तह में घर तुम्हारा।


जो एक अस्तित्व है अज्ञेय मेरा


है उसका एक एक अक्षर तुम्हारा।


मेरा दिल अब भी है तेरी ही जद में


लगा है फ़िर वहीँ नश्तर तुम्हारा.


वो जिसको मैं कहा करता था पत्थर


कहाँ है आज वो इश्वर तुम्हारा.


तुम्हारी आँखें जिसका आशियाँ थी


है वो ही दोस्त अब बेघर तुम्हारा।





Monday, August 24, 2009

दर्द तन्हा है


जो लोग मेरे साथ थे


वो जिनकी मुझे आस थी


लोग भी बदल गए


तुम भी चली गयी प्रिया।


जो हमने देख रखे थे


कितने सहेज रखे थे


वो सारे स्वप्न जल गए


तुम भी चली गयी प्रिया।


तुमको शिकायतें रही


मुझको तलब है नींद की


नींद भी इन आँखों से


अब रास्ते बदल गए


तुम भी चली गयी प्रिया।


मेरे साथ ही होता है क्यों


अब तुमसे मैं क्या क्या कहूँ


खुशियाँ,सुकून,चाय तक


मुझे छोड़ दर असल गए


तुम भी चली गयी प्रिया।


missing you my love.





Saturday, August 22, 2009

दुष्यंत ...तुम्हारे लिए


तुम जिसे ओढ़ते बिछाते थे

वो गजल ही हमें सुनाते थे

हर्फ़ देर हर्फ़ बे नजीर हो तुम

किसी ने सच ही कहा आखिरी कबीर हो तुम।


तुम रहे वक्त से सदा आगे

कोशिशें की , कि कोई तो जागे

कलम कि शक्ल में शमशीर हो तुम

किसी ने सच ही कहा आखिरी कबीर हो तुम ।


बहुत इंसानियत का हक अदा किया तुमने

महज अल्फाज़ से मोज़ज़ा किया तुमने

कभी मोमिन कभी ग़ालिब कभी मीर हो तुम

किसी ने सच ही कहा आखिरी कबीर हो तुम.

Friday, August 21, 2009

THE AFTER EFFECT


मुझको तुम्हारे इश्क ने दीवानगी है कि अता

क्या मैंने होश खो दिए या ये जहाँ बदल गया।


तुमसे जो मिल के हंस लिए तो जख्म हरे हो गए

तुमसे लिपट के रो लिये तो दर्द भी संभल गया ।


तेरी हरेक बात को मैं भुला सका नही आज तक .

लेकिन वो मुड के देखना मेरी जिन्दगी बदल गया ।


मुझको हुआ है ये गुमान तुम भी उदास हो कहीं

जो फूल तुमको पसंद थे उन्हें आज कोई मसल गया ।


मेरी कलम ना छीनिए ये कसूर है दिमाग का

मै जो भी सोचता गया कलम ने वो उगल दिया

Wednesday, August 19, 2009

दिल्ली ( जैसा मैंने समझा)






यहाँ ईसा कि कीमत है
यहाँ इन्सां बिकाऊ है
अजब यह शहर है
इसकी रवायत सीखनी होगी।

यहाँ पर जुर्म गुरबत है
महज बातों मे निस्बत है
जियां ओ सूद आदत है
ये आदत सीखनी होगी।

यहाँ पानी कि कीमत है
फकत पैसा ही जीनत है
नही आती अगर तुमको
तिजारत सीखनी होंगी।

यहाँ शमशीर रिश्तों पर
यहाँ हर चीज किस्तों पर
लफ्ज़ ए इमां किताबी है
कहावत सीखनी होगी ।

रवायत- ढंग, तरीका,
गुरबत- गरीबी
निस्बत - संबंध ,RELATIONS
जियां ओ सूद- PROFIT AND LOSS
तिजारत- BUSINESS
शमशीर- तलवार
लफ्ज़ ए इमां- THE WORD HONESTY.





Tuesday, August 18, 2009

फ़िक्र ओ नजर ( POINT OF VIEW)


खफा मैं बेसबब ही था तुमसे
तुम्हारी अपनी ही मजबूरियां है।

कभी जो फासले थे, अब नही हैं
मगर अब कुरबतों की दूरियां हैं।

बहुत हम दोनों में चाहत है लेकिन
बहुत हम दोनों में मगरूरियां हैं ।

कभी जो खेलती थी धडकनों से
अब उन आँखों में बेनूरियां हैं ।

न हो हैरान कि मै पीता नही हूँ
कि मुझको जीस्त कि मख्मूरियां हें।

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khalish



तुम्हे देखना था जो तुमने न देखा
कोई और देखे तो मुझको असर क्या
जो हासिल किया है वो तुमने दिया है
कोई और दे दे तो शम्श ओ कमर क्या ।

तुम्हारे ही क्लिप से लिखा नाम जिस पर
अब भी खुदे है वो जेर ओ जबर क्या ।

तले जिसके अक्सर, रहे पहरों बैठे
अब भी खड़ा है ,वही वो शजर क्या ।

हैं ये लफ्ज सारे तुम्हारे सहारे
तुम्हारे बिना जान मुझमे हुनर क्या।

है हासिल बहुत कुछ, है मंजिल भी पाई
जो तुम संग न गुजरी तो फ़िर वो सफर क्या.

Sunday, August 16, 2009

तीन वर्ष

BHU college days ॥

ख्याल ए यार कि हर इब्तिदा तो यक सी थी,
नसीम ए सुब्ह, कुछ अख़बार और अवधेश की चाय। (नसीम ए सुब्ह-सुबह की ठंडी हवा)

तुम्हारे साथ गुजारे थे जो बेफिक्री के din,
ना कर वो जिक्र मेरे दोस्त, कि हाय।

लगा करे था कि किसने मजाक कर ड़ाला,
agarche बात पढाई कि कभी आ जाय।

बेसबब बेलौस हंसा करते थे मानिंन्द ए पागल,
के अब तो ढूँढ़ते रहते ही,अमाँ कोई हंसाय।

अता हुए थे जिन्दगी के महज तीन बरस,
जो बच गयी है, सजा है, निपट लिया जाये.
satya a vagrant.......

Sunday, August 2, 2009

Navarambh

प्रारम्भ किसी और की लेखनी से करता हूँ ।

क्या खाक मदावा ए गम ए हिज्र करोगी
तुम मेरी मुहब्बत को समझ ही नही सकती।
जब तक की मुहब्बत की हकीकत को ना समझो
फनकार की चाहत को समझ ही नही सकती।

( मदावा ऐ गम ऐ हिज्र- गम ऐ जुदाई की दवा )
anaam)

मित्रों यह ब्लॉग मेरे अप्रकाशित ( परन्तु शीघ्र प्रकाश्य) कविताओं का सॉफ्ट कॉपी है। आशा है
आपको पसंद आयेगी। आपके कमेंट्स का सदैव स्वागत एवं इंतजार रहेगा

( सत्य व्यास)