Monday, October 19, 2009

THE APPARENT CHANGES



मैं अक्सर सोचता हूँ खिल्वतों मे


नाम किसका था तेरी मन्नतों में।


मेरा ही जिक्र है अब कू ब कू में


मुद्दा ऐ बहस हूँ अब दोस्तों में ।


रात कल भी कोई साया सा गुजरा


रात कल भी गुजारी करवटों में ।


तुम भी क्यूँ ढूँढ़ते हो एक ही शब्


रात आती है ऐसी मुद्दतों में।


"सत्य" अब हो गया है बेहिस सा

हकपरश्ती थी जिसकी आदतों में .

(खिलवत-अकेलापन ,तन्हाई )

(कू ब कू -हर गली में )

( बेहिस-भावनारहित)

हकपरश्ती- to fight for other's right

Tuesday, October 13, 2009

रात, चाँद और हम


तू मेरे गम में साथ चलता है

तू मेरी हर खुशी में ढलता है ।


दिल की नादानियाँ तो जायज हैं

जेहन भी चाँद को मचलता है ।


तुझको सुनके ही जान आती है

तुझको सुनके ही दम निकलता है ।


कौन सी बात की कसम दूँ तुझे

तू तो हर बात पे बदलता है ।


आँखें पढ़ लेती हैं तेरे दिल को

जब दुप्पट्टे को तू मसलता है .



(चित्र -गूगल से साभार)

Friday, October 9, 2009

नसीहत



कुछ इस तरह से दफ़न, हम तुम्हारी याद करें


मकान ख़ुद को करें और तुम्हें बुनियाद करें ।



अच्छाइयाँ हर वक्त की अच्छी नहीं ए दोस्त


चलो कि इश्क मे खुद को जरा बर्बाद करें।



तेरा खुदा, तेरा मुंशिफ और तू यक सा


जेहन में कशमकश , अब किसे फरियाद करें।



बदी नेकी की बहस अपनी जगह चलने दें


एक बुलबुल को पिंजरें से हम आजाद करें ।



ये और बात की तुझसे ही सारे दर्द मिलें


मगर मजाल नहीं तुझको हम नाशाद करें

Wednesday, October 7, 2009

मुस्तकबिल..........


क्या पढ़ रहे हो ?
मेरी आँखों पर अपनी हथेली रखते हुए तुमने कहा था ।
नक्श ऐ फरियादी। जानती हो! फैज़ की एक नज़्म है -
"मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग"
इस नज्म ने communism को एक नया स्टैण्डर्ड दिया था ।
सुनोगी?
नहीं। तुम्हारी ये उर्दू फारसी मेरे पल्ले नही पड़ती. तुलसी वाली चाय बनाई है लॉन मे चलो ।


आज २१ फरवरी को तुम्हारा ख़त मिला है।
लिखा है .....
अब फैज़ की ये नज़्म ही तुम्हारा मुस्तकबिल है।
"मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग"



मुस्तकबिल-future

(चित्र गूगल से साभार )

Monday, October 5, 2009

मुझे कह लेने दो .....


नाकामियों की एक नई मिसाल हो गए

शतरंज ऐ जिंदगी की पिटी चाल हो गए ।

राँझा ने जब किया तो फ़िर कहानिया बनी

हमने जो कर लिया तो फ़िर बवाल हो गए ।

तुझे देखने की बात तो सपनो की बात है

तुझको सुने हुए भी कई साल हो गए।

एक मेरे नाम से जो तेरा नाम जुड़ गया

आँखों में सबके चुभता हुआ बाल हो गए

वो कहते फ़िर रहे हैं "नही उनका है जवाब"

गोया लगे है, "सत्य" का सवाल हो गए।

Sunday, October 4, 2009

wake up satya







नतीजा अब के भी, हर बार सा लगता है मुझे



नया मसीहा भी लाचार सा लगता है मुझे।






मैंने जिसकी भी दुआ की, वही मिली न मुझे



ये खुदा भी कोई नादार सा लगता है मुझे ।






मैली चादर,ऊँघता पंखा,फर्श पे टूटा कॉफी का कप



मेरा कमरा भी अब बीमार सा लगता है मुझे।






हर वो शख्श जो अपने गम को जब्त करता है



हर वो शख्श एक फनकार सा लगता है मुझे।






हमेशा क्यूँ तेरे हक की ही बात करता है



मेरा दिल भी तो अब गद्दार सा लगता है मुझे






नादार-garib,pennyless
(image from google)


Saturday, October 3, 2009

Addicted

तुम्हारी रसोई वीरान पड़ी है .
कोई बाईस घंटे बाद ख्याल आया ,
कि मैंने खाना नही खाया
एक अफ्सुर्दगी छा गई
तुम्हारी बात याद आ गई
"डॉक्टर ने दही मना किया है
बगैर रायता, खाने की आदत डालो"

एक सच कहता हूँ :
"मुझे रायता कि नही, तुम्हारी आदत थी ".

Thursday, October 1, 2009

अनमना सा कुछ

"तुम्हारी भूलने की आदत कब जायेगी ? "
तुम्हारे हथेली पे तुम्हारे कान के बूंदों को रखते हुए मैंने कहा था ।
"sorry this is the last time" तुमने कहा था .
मगर कहाँ !

तुमने बूंदों को सहेजा और मुझे भूल गई