शाख से टूटे तो फिर मर जाएँगे पत्ते
फूलों की नुमाईश मे बिखर जाएंगे पत्ते
मालिक ने भी फूलों को ही तो सर पे चढ़ाया
है मतलबी माली तो किधर जाएँगे पत्ते |
फूलों की बेरुखी के हश्र का सवाल था
मेरा था ये जवाब कि झर जाएँगे पत्ते
बारिश ये रहमतों की तो बस एक फ़रेब है
तुम देखना ओसों से सँवर जाएँगे पत्ते
तुमको है ये गुमाँ कि शहर दिल्ली दूर है
मुझको है ये यकीन कि शहर जाएँगे पत्ते