वैसे ही तुम्हे कुछ याद नही रहता
सो याद दिला देता हूँ
(गैर जरुरी बातें याद ही कहाँ रहती हैं )
तुम्हारे लॉन मे बैठा चाय का इंतजार कर रहा था
ग़लत ! शायद तुम्हारा इंतजार कर रहा था
(मैं ख़ुद से भी झूठ बोलने लगा हूँ)।
तभी तुमने पीछे से आकर कहा- चाय लो
तुम्हारे एक हाथ मे जाफरानी कप
और दूसरे हाथ मे अख़बार था
तुमने मुझे चाय दी और ख़ुद
अख़बार देखने लगी
मैंने कहा चाय अच्छी बनी है
तुम अखबारमे मशरूफ रहीं
फ़िर अचानक बोल पड़ीं
आज सप्तमी है न बताओ तो
आज माँ के कौन से रूप की पूजा होती है
तुमको अपलक देखते हुए कहा था
"मैं भगवान मे नही मानता "
तुम्हे मानना चाहिए और एक दिन मानोगे जब
हम ...........................
आ के देख लो
मैं मन्दिर जाने लगा हूँ .
Its all too good yaar...infact reading ur thoughts expressed in such beautiful words make me run short of words...i am sorry for that...
ReplyDeleteतुमको अपलक देखते हुए कहा था" कविता यही समाप्त हो जाती है । इसलिये कि स्त्री ही देवी होती है ।
ReplyDeletebahut acchi kavita liki hain kyunki mujhe samajah aayi
ReplyDeleteaise hi likha karo jo mujhe samajh aaye
sushma
itni achi hai or aap keh raho isse
ReplyDeletemat padho............