अभी भी सामने उसके छिटक जाती है नजर
न आया अब भी मुझे उससे बोलने का हुनर ।
अभी भी राज ऐ दिल उसको बता नही पाया
कोई मजाक नही राज खोलने का हुनर ।
सबको बख्शी है खुदा तूने आदमी की परख
मुझे भी कर अता आँखों से तोलने का हुनर ।
तुम अपने याद के नक्शे मिटा न पाओगे
मैं जानता हूँ लफ्ज ओ वक्त घोलने का हुनर ।
कि जिस तरह से सिखाई थी सलीका ऐ वफ़ा
उसी तरह से सिखाना था भूलने का हुनर .
great.................
ReplyDelete'अभी भी सामने उसके छिटक जाती है नजर
ReplyDeleteन आया अब भी मुझे उससे बोलने का हुनर' ।
wakai iss line ko padh ke kuch-kuch hota hai!!!!!
वाह ज़नाब वाह !!
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