Wednesday, September 23, 2009

फ़िर वही तलाश ..............


तेरी बातें,तेरी यादें, तेरे ख़त,तेरी तलाश

मेरे घर के साथ ही सुपुर्द ऐ आतिश हो गईं ।


दिल बिका मेरा फकत कुछ कौडियों के मोल से

फक्र करते थे बहुत, लो आजमाईश हो गयी ।


तब कहा करते थे उसकी आंखों मे है सादगी

अब कहा करते हो मेरे साथ साजिश हो गई ।


उनका था ये कौल तेरे सामने न आयेंगे

आज ये कैसे मगर उनकी नवाजिश हो गई ।


रो दिया था आस्मां भी सुन के मेरी दास्ताँ

जैसे ही मैं चुप हुआ वैसे ही बारिश हो गई ।




Tuesday, September 22, 2009

नीयति

मानता ख़ुद को खुदा मैं तुमको पा लेता अगर
तुमने मुझको रास्ते में छोड़कर अच्छा किया ।

प्यार में बंधन नही है जो मैं तुमको बाँध लूँ
प्यार का तुमने सलासिल तोड़कर अच्छा किया ।

मंजिलें जो ना मिलें तो हमसफ़र किस काम का
तुमने मुझसे राहें अपनी मोड़कर अच्छा किया ।

एक तेरे बाद से ही नींद अब आती नही
रतजगों से साथ मेरा जोड़कर अच्छा किया ।


तुम नही जाते तो कैसे ढूढ़ पाता 'सत्य' को
तुमने मेरी रूह को झंझोड़ कर अच्छा किया ।

सलासिल- जंजीर, बेडियाँ

तेरे बगैर

ख़ुद की लगायी आग मे जलता रहा तेरे बगैर
आवारगी की राह पर चलता रहा तेरे बगैर ।

तुमने मुझको ढाल कर रखा था मेरी शक्ल मे
जाने किस किस शक्ल मे ढलता रहा तेरे बगैर।

तुम बताकर जो चले जाते तो कोई हर्ज़ था?
दर्द ये ही फांस बन खलता रहा तेरे बगैर ।

तुम हो तनहा और उसपर सैकडों दुश्वारियां
मैं तो बस इस सोच मे गलता रहा तेरे बगैर ।

ख्वाहिशें जो तुमसे मिलने की कभी दिल मे उठीं
दिल को तेरी याद से छलता रहा तेरे बगैर ।


Sunday, September 20, 2009

an emotional fool.............

बाहम शनाश लोगों में तेरी बात जब भी आ गई

तेरा जिक्र भी न कर सका, मै और मेरी लाचारियाँ ।


जो भी मिला उसने कहा उसका यकीन मत करो

फ़िर मुझे भली लगीं तेरी आँखों की अय्यारियाँ


तेरे पहले भी तो कम न थी जिंदगी की तल्खियाँ

तेरे बाद और भी बढ़ गयीं जीस्त की दुशवारियाँ


मुझे ठण्ड से परहेज है और सर्दियों से दुश्मनी

दिल के मगर करीब है यादों की बर्फ-बारियाँ


उम्र से पहले ही क्यूँ, ये तुमपे कैसे आ गयीं

आंखों के नीचे तीरगी और माथे पे ये धारियां


बाहम शनाश-दोनों को जानने वाले

तीरगी-darkness






तंज़


अभी भी सामने उसके छिटक जाती है नजर

न आया अब भी मुझे उससे बोलने का हुनर ।


अभी भी राज ऐ दिल उसको बता नही पाया

कोई मजाक नही राज खोलने का हुनर ।


सबको बख्शी है खुदा तूने आदमी की परख

मुझे भी कर अता आँखों से तोलने का हुनर ।


तुम अपने याद के नक्शे मिटा न पाओगे

मैं जानता हूँ लफ्ज ओ वक्त घोलने का हुनर ।


कि जिस तरह से सिखाई थी सलीका ऐ वफ़ा

उसी तरह से सिखाना था भूलने का हुनर .


Wednesday, September 16, 2009

कभी यूँ भी .........


अहबाब पूछते हैं बता कौन था वो शख्स

जिसकी वजह से तू हुआ मशहूर इन दिनों


मुमकिन नही हर बात पहुँचती हो वहां तक

वो शख्श रह रहा है बहुत दूर इन दिनों


मैंने फरेब देखें है उसके कई दफा

पर ये चलन चला है बदस्तूर इन दिनों


उसकी भी परेशानियाँ कुछ कम तो नही है

मैं भी हूँ पशेमान ओ मजबूर इन दिनों


दरमान अगर है तो दवा क्यूँ नही देता

तेरा हिज्र बन गया है नासूर इन दिनों


अहबाब-दोस्त

दरमान- दवा देने वाला, मसीहा






खुदकुशी

(चित्र गूगल से साभार )

मैं पहले बोलता था
अब पहरों सोचता हूँ ।

बहुत पढता था पहले
कि अब लिखने लगा हूँ ।

मैं हँसता भी बहुत था
पर अब चुप सी लगी है ।

मै पहले उड़ रहा था
पर अब पर ही नही है ।

जरा सी आग रहती थी
अब बस राख ही है ।

तब थोड़ा हौसला था
पर अब कुछ भी नही है ।

मुझे ये गम नही कि तुमने मुझे छोड़ दिया है ऐ दोस्त
गिला यह है तुमने कहीं का नही छोडा