Tuesday, August 24, 2010

तेरा भईया,तेरा चंदा,तेरा अनमोल रतन




मै पला छाया मे तेरे
बांह मे खेला तुम्हारी
पाठशाला थी प्रथम तुम

तुमसे ही सीखी पढ़ाई



जब भी खायी दूध रोटी

मैंने हाथो से तुम्हारे

रूप कोई भी धरो तुम

याद तुममे माँ ही आई


स्वप्न से होकर भयातुर
जब तुम्हारे पास आय़ा
"तुम बहुत ही साहसी हो"
बात ये तुमने बतायी

मुझको नहलाने की
खातिर और बहलाने की खातिर
ये कहा तुमने हमेशा
"बांह से देखो तुम्हारे
कैसे निकलेगी सियाही"


भूल से यदि भूलवश ही
कह दिया हो कुछ भी अनुचित
माफ़ कर देना मुझे तुम
मै तुम्हारा ध्रीस्ट भाई

Saturday, July 10, 2010

सवाल ओ जवाब


उसी युकिलिप्टस पे मेरा नाम दुबारा लिख सकते हो?

नही.

क्यूँ? जगह नही बची?

वजह नही बची.


अच्छा. अब भी दिन के एक खत बिला नागा लिखते हो?

नही?

फिर? क्या करते हो ?

एक्सेल की शीटेँ भरता हूँ.


गजल तो लिखते होगे?

उन्हू.

क्या आशनाई खत्म हो गयी?

रोशनाई खत्म हो गयी.


सालाना उर्स मे जाते हो?

नहीँ.

क्या फुर्सत नही होती?

जुर्रत नही होती.


अब कभी तुमसे मिलना मुमकिन है?

नही.

एहतियातन भी नही?

इत्तिफाकन भी नहीं.

अच्छा............ मुझे मुआफ कर पाओगे?

नही.

क्या मेरा गुनाह ना काबिले माफी है?

तुमने गुनाह कहा,इतना ही काफी है .

Sunday, May 30, 2010

WHAT'S IN THY NAME



तुम्हारे ज़ाए ने तुम्हे माँ कहा है


आज तुमने पूर्णत्व को छुआ है .


अपने प्रारंभ में तुम किसी के घर की लक्ष्मी हुई.


समझने की उम्र में खुद को फलां की बेटी जाना.


भईया की बहन होने में भी कोई षड्यंत्र नहीं था


सुरक्षा ही थी कदाचित .


स्कूलों में भी हाजिरी के "यस सर" तक सीमित थी तुम .


शीशे में खुद को पहचानने के दिनों में


शोहदों ने कुछ नाम भी दिए होंगे तुम्हे .


(मैंने भी एक नाम दिया था याद है तुमको)


फिर शहनाईयों के शोर ने मोहलत न दी होगी


बहू, दुल्हन या फिर भाभी की आदी हो गयी होगी ।


मगर तुम फिर भी खुश हो क्योंकि,


तुम्हारे ज़ाए ने तुम्हे माँ कहा है
आज तुमने पूर्णत्व को छुआ है.


सुनो मेरा कहा मानो


कि अब तो खुद को पहचानो


और उस दिन से हिरांसा हो


वो जिस दिन पूछ बैठेगा


तुम्हारा नाम क्या है माँ?









Thursday, May 13, 2010

सियाह नसीब

उम्र गुजरी है फकीराना मुहब्बत करते

तेरा ही जिक्र,तेरी फ़िक्र, तेरी आदत करते।

कहें कैसे कि कोई जुर्म ए मुहब्बत न करे

अगर न हमने की होती तो नसीहत करते ।

तेरी शरीर निगाहों ने बदगुमान किया

वगरना हम भला कब चाँद की चाहत करते।

तुम्हारे काँधे के तिल कों तीरगी देते

सियाह नसीब न होते तो हिमाकत करते ।

हमें खबर है हकीकत तेरे बहानों की

ख्याल ए इश्क न होता तो शिकायत करते ।

बदगुमानी मे तेरी बात शरियत समझी

जुनू मे तेरे लिखे कों ही वसीयत करते ।

शरीर -chanchal ,mischievous

तीरगी- darkness,

सियाह नसीब -ill fated, बदनसीब

Monday, April 19, 2010

कहा सुनी

उस रात,

जब मैं तुम्हे देना चाहता था

तुम्हारे हिस्से कि रोटी

तुम्हारे हिस्से के पैरहन

तुम्हारे हिस्से का मकान ........

तुमने मुझे मार्क्सवादी कहा था

रोटी और बन्दूक की फिलासोफी से अपने पल्ले झाडे थे

और फकत अपने हिस्से का प्यार मांगा था

नासमझ वक्त का बेलगाम दरिया बह गया

तुम चली गयी तो समझौते आ गए

आज की रात

जब मैं तुम्हे नहीं दे सकता

तुम्हारे हिस्से की रोटी

तुम्हारे हिस्से का पैरहन

तुम्हारे हिस्से का मकान

और ना ही तुम्हारे हिस्से का प्यार

तुमने मुझे बुद्धिजीवी कहा है

Tuesday, April 13, 2010

आदतन लिखता हूँ

न पूछ कैसी वजह ए कुल्फत है

तुमको रोना तो मेरी आदत है

"भूल जाओ कही सुनी बातें "

क्या गज़ब आप की नसीहत है

मत हो हैरान की मैं नहीं सोता

निस्फ़ रातों मे तेरी लज्जत है

उसको देखे से ऐसे लगता है

अपनी जैसी ही उसकी हालत है

"सत्य" की बात गर करे कोई

मान लेना की जेहनी ग़ुरबत है

वजह ए कुल्फत- दुःख का कारण

निस्फ़-आधी

जेहनी ग़ुरबत- दिमाग रहित

Saturday, March 27, 2010

एक SAAUMYA सी गुजारिश


सुनो तुम फ़िक्र मत करना

तुम्हे जाना है ,तुम जाओ

मेरी खातिर न रुक जाओ

कि जैसे तुम बदलते हो

बिना देखे गुजरते हो

बदल जायेंगे ये दिन भी

गुजर जायेंगे ये दिन भी


हाँ कोई बात गर रोके

मेरे हालात गर रोकें

पुरानी याद गर रोके

तो तुम दिल को मना लेना

उसे इतना बता देना,

बदलना भी जरुरी है

कि चलना भी जरुरी है

जरुरत ही तो सबकुछ है


सुनो तुम फ़िक्र मत करना

मगर ये जिक्र मत करना

नहीं तो लोग हंस लेगे

मुझ पर ताने कस लेंगे .

मुझे अपनी नहीं चिंता

कि गोया फ़िक्र बस ये है

वो तुमको भी सतायेंगे

तुम्हे दोषी बताएँगे .


सुनो तुम फ़िक्र मत करना

तुम्हे जाना है, तुम जाओ ।

मगर एक बात सुन जाओ

मैं ये फिर कह न पाउँगा

"मैं तुम बिन रह ना पाउंगा "

"मैं तुम बिन रह ना पाउंगा"


(छोटे भाई सोनू के लिए )