
उसी युकिलिप्टस पे मेरा नाम दुबारा लिख सकते हो?
नही.
क्यूँ? जगह नही बची?
वजह नही बची.
अच्छा. अब भी दिन के एक खत बिला नागा लिखते हो?
नही?
फिर? क्या करते हो ?
एक्सेल की शीटेँ भरता हूँ.
गजल तो लिखते होगे?
उन्हू.
क्या आशनाई खत्म हो गयी?
रोशनाई खत्म हो गयी.
सालाना उर्स मे जाते हो?
नहीँ.
क्या फुर्सत नही होती?
जुर्रत नही होती.
अब कभी तुमसे मिलना मुमकिन है?
नही.
एहतियातन भी नही?
इत्तिफाकन भी नहीं.
अच्छा............ मुझे मुआफ कर पाओगे?
अच्छा............ मुझे मुआफ कर पाओगे?
नही.
क्या मेरा गुनाह ना काबिले माफी है?
तुमने गुनाह कहा,इतना ही काफी है .
13 comments:
शानदार पोस्ट
वज़ह नहीं बची...
रौशनाई खत्म हो गई...
जुर्रत नहीं होती...
वाकई लाज़वाब कर दिया...
एक अलग ही अंदाज़ है।
आपकी समझ प्रभावित करती है।
शुक्रिया।
बेहतरीन...बहुत उम्दा!
wahji bahut khoob
'क्या मेरा गुनाह ना काबिले माफी है?
तुमने गुनाह कहा,इतना ही काफी है .'
माफ़ करने का तरिका भी लाजवाब है,,
और 'सवाल ओ जवाब ' भी!!!!!
AWAMISH P DUBEY
रोचक सवाल जवाब ......!!
sahi baat kabhi jagah nahi bachti or kabhi vajah nahi...
वाह वाह - लाजवाब प्रस्तुति
too gud!
bhai jaan apne school ke din yaad aa gaye............. hamne bhi bahut sari payar bahri baate liki hai is peed pe... jo ki ham kiski ko bol nahi paye
awesome...
u just gave words to my feelings..
bahut badhiya hai
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