
यहीं पे मुक्कद्दर की बात आ गयी है. यहीं पे नसीबों से काम आ पड़ा है. मुझे खोदना है पर्वत से दरिया, तेरे सामने भी तो कच्चा घडा है.
Monday, December 28, 2009
The eternal breakup

Saturday, December 5, 2009
I=F/T
तब जबकि तुम नही थे ॥
मैं स्कूली किताबों मे गर्क था
इतना कि आँखें ख़ुद को
यतीम मान बैठीं थीं
खैर! एक शै तब भी
मेरे समझ के बाहर थी
आवेग
"यह किसी चीज पर
बहुत कम समय मे लगे
बल कि प्रतिक्रिया है "
फ़िर तुम आयीं
बहुत थोड़े समय के लिए
फ़िर चली गयीं।
अपने भीतर कुछ महसूस किया
फ़िर इस "कुछ" कि आदत हो गई।
अब जबकि तुम नही हो
एक दिन पड़ोसी के लड़के ने मुझसे पुछा
भइया ! what is impulse ?
और मुझे बे साख्ता तुम याद आ गई
सच है !
कुछ तालीम किताबों से नही
अज़ाबों से मिलती है।
Wednesday, November 11, 2009
दर्स ए मुहब्बत ( asset of love )

तभी दफअतन घूम कर
Monday, November 9, 2009
लविन्ची कोड .

चित्र - अमोल के ऑरकुट प्रोफाइल से साभार । पीछे दीखता चेहरा भी उन्ही का है .
Tuesday, November 3, 2009
A Discarded Poetry.
मुफलिसी की इन्तिहाई है
मेरे हिस्से रिदा नही आती.
रंज हर रोज मारती है मुझे
मुझको फ़िर भी कज़ा नही आती .
तुम मुझे अब भी याद करते हो
हिचकियाँ बेवजा नही आतीं.
जिंदगी से बड़ी सज़ा हो कोई
रास अब ये सजा नही आती .
वक्त औ दूरियां सब अपनी जगह
हमारे दरमियाँ नही आती ।
मुफलिसी - गरीबी
रिदा-चादर
कज़ा-मौत
Sunday, November 1, 2009
उन्स

Monday, October 19, 2009
THE APPARENT CHANGES

मैं अक्सर सोचता हूँ खिल्वतों मे
नाम किसका था तेरी मन्नतों में।
मेरा ही जिक्र है अब कू ब कू में
मुद्दा ऐ बहस हूँ अब दोस्तों में ।
रात कल भी कोई साया सा गुजरा
रात कल भी गुजारी करवटों में ।
तुम भी क्यूँ ढूँढ़ते हो एक ही शब्
रात आती है ऐसी मुद्दतों में।
"सत्य" अब हो गया है बेहिस सा
हकपरश्ती थी जिसकी आदतों में .
(खिलवत-अकेलापन ,तन्हाई )
(कू ब कू -हर गली में )
( बेहिस-भावनारहित)
हकपरश्ती- to fight for other's right
Tuesday, October 13, 2009
रात, चाँद और हम
Friday, October 9, 2009
नसीहत

कुछ इस तरह से दफ़न, हम तुम्हारी याद करें
मकान ख़ुद को करें और तुम्हें बुनियाद करें ।
अच्छाइयाँ हर वक्त की अच्छी नहीं ए दोस्त
चलो कि इश्क मे खुद को जरा बर्बाद करें।
तेरा खुदा, तेरा मुंशिफ और तू यक सा
जेहन में कशमकश , अब किसे फरियाद करें।
बदी नेकी की बहस अपनी जगह चलने दें
एक बुलबुल को पिंजरें से हम आजाद करें ।
ये और बात की तुझसे ही सारे दर्द मिलें
मगर मजाल नहीं तुझको हम नाशाद करें
Wednesday, October 7, 2009
मुस्तकबिल..........

मेरी आँखों पर अपनी हथेली रखते हुए तुमने कहा था ।
नक्श ऐ फरियादी। जानती हो! फैज़ की एक नज़्म है -
"मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग"
इस नज्म ने communism को एक नया स्टैण्डर्ड दिया था ।
सुनोगी?
नहीं। तुम्हारी ये उर्दू फारसी मेरे पल्ले नही पड़ती. तुलसी वाली चाय बनाई है लॉन मे चलो ।
आज २१ फरवरी को तुम्हारा ख़त मिला है।
लिखा है .....
अब फैज़ की ये नज़्म ही तुम्हारा मुस्तकबिल है।
"मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग"
Monday, October 5, 2009
मुझे कह लेने दो .....

Sunday, October 4, 2009
wake up satya

Saturday, October 3, 2009
Addicted
कोई बाईस घंटे बाद ख्याल आया ,
कि मैंने खाना नही खाया
एक अफ्सुर्दगी छा गई
तुम्हारी बात याद आ गई
"डॉक्टर ने दही मना किया है
बगैर रायता, खाने की आदत डालो"
एक सच कहता हूँ :
"मुझे रायता कि नही, तुम्हारी आदत थी ".
Thursday, October 1, 2009
अनमना सा कुछ
तुम्हारे हथेली पे तुम्हारे कान के बूंदों को रखते हुए मैंने कहा था ।
"sorry this is the last time" तुमने कहा था .
मगर कहाँ !
तुमने बूंदों को सहेजा और मुझे भूल गई
Wednesday, September 30, 2009
शिकायतें
बेफिजूल ( इसे न पढ़ें )
सो याद दिला देता हूँ
(गैर जरुरी बातें याद ही कहाँ रहती हैं )
तुम्हारे लॉन मे बैठा चाय का इंतजार कर रहा था
ग़लत ! शायद तुम्हारा इंतजार कर रहा था
(मैं ख़ुद से भी झूठ बोलने लगा हूँ)।
तभी तुमने पीछे से आकर कहा- चाय लो
तुम्हारे एक हाथ मे जाफरानी कप
और दूसरे हाथ मे अख़बार था
तुमने मुझे चाय दी और ख़ुद
अख़बार देखने लगी
मैंने कहा चाय अच्छी बनी है
तुम अखबारमे मशरूफ रहीं
फ़िर अचानक बोल पड़ीं
आज सप्तमी है न बताओ तो
आज माँ के कौन से रूप की पूजा होती है
तुमको अपलक देखते हुए कहा था
"मैं भगवान मे नही मानता "
तुम्हे मानना चाहिए और एक दिन मानोगे जब
हम ...........................
आ के देख लो
मैं मन्दिर जाने लगा हूँ .
Tuesday, September 29, 2009
इल्तिजा..

पढ़ते रहते हैं कहीं तेरी ख़बर मिल जाए
लिखते रहते हैं कहीं तुमको ख़बर हो जाए ।
गमे दुनिया,गमे जानाँ, गमे हस्ती के बाद
और क्या चाहिए बस यूँ ही बसर हो जाए ।
दुआ को हाथ उठाने मे कोई हर्ज नही
ना जाने कब दुआओं मे असर हो जाए ।
गैरों पे होती है जो आपकी निगाहे करम
ये इनायत कभी हम पर भी नजर हो जाए ।
कभी तो साथ चलो काँटों भरे राहों पर
कुछ मुख्तसर ये तवील सफर हो जाए ।
मुख्तसर- छोटा।
तवील- लंबा
Monday, September 28, 2009
तशनगी..... the thirst

Thursday, September 24, 2009
वक्त ऐ रुखसत

एक दफा पीछे पलट कर देख कर जाता ।
कलम जो ना साथ होती तो किधर जाता
लिख नही पाता तो शायद घुट के मर जाता ।
ये तुम्हारी भूल थी, माना है तुमने, शुक्र है
वरना ये इल्जाम भी तो मेरे सर जाता ।
है टूटने का शौक मुझको किस्तों किस्तों मे
तुम जो ना मुझको पिरोते तो बिखर जाता ।
तेरे कूचे मे गुजारी मैंने अपनी एक उम्र
कौन सा चेहरा मैं लेकर अपने घर जाता
Wednesday, September 23, 2009
फ़िर वही तलाश ..............

Tuesday, September 22, 2009
नीयति
तुमने मुझको रास्ते में छोड़कर अच्छा किया ।
प्यार में बंधन नही है जो मैं तुमको बाँध लूँ
प्यार का तुमने सलासिल तोड़कर अच्छा किया ।
मंजिलें जो ना मिलें तो हमसफ़र किस काम का
तुमने मुझसे राहें अपनी मोड़कर अच्छा किया ।
एक तेरे बाद से ही नींद अब आती नही
रतजगों से साथ मेरा जोड़कर अच्छा किया ।
तुम नही जाते तो कैसे ढूढ़ पाता 'सत्य' को
तुमने मेरी रूह को झंझोड़ कर अच्छा किया ।
सलासिल- जंजीर, बेडियाँ
तेरे बगैर
आवारगी की राह पर चलता रहा तेरे बगैर ।
तुमने मुझको ढाल कर रखा था मेरी शक्ल मे
जाने किस किस शक्ल मे ढलता रहा तेरे बगैर।
तुम बताकर जो चले जाते तो कोई हर्ज़ था?
दर्द ये ही फांस बन खलता रहा तेरे बगैर ।
तुम हो तनहा और उसपर सैकडों दुश्वारियां
मैं तो बस इस सोच मे गलता रहा तेरे बगैर ।
ख्वाहिशें जो तुमसे मिलने की कभी दिल मे उठीं
दिल को तेरी याद से छलता रहा तेरे बगैर ।
Sunday, September 20, 2009
an emotional fool.............
तंज़
Wednesday, September 16, 2009
कभी यूँ भी .........

खुदकुशी

अब पहरों सोचता हूँ ।
बहुत पढता था पहले
कि अब लिखने लगा हूँ ।
मैं हँसता भी बहुत था
पर अब चुप सी लगी है ।
मै पहले उड़ रहा था
पर अब पर ही नही है ।
जरा सी आग रहती थी
अब बस राख ही है ।
तब थोड़ा हौसला था
पर अब कुछ भी नही है ।
मुझे ये गम नही कि तुमने मुझे छोड़ दिया है ऐ दोस्त
गिला यह है तुमने कहीं का नही छोडा
Saturday, September 12, 2009
खाली हाथ

यह सोचना मेरी भूल थी
तू मेरा कभी भी रहा नही
मेरी कोशिशें ही फिजूल थी
वो जो आसमान में रहता है
वहीँ बैठा हँसता जो रहता है
मेरी एक अर्जी को छोड़ कर
उसे सबकी अर्ज़ कुबूल थी ।
तेरे खयाल जो आ गए
मैं खुशबुओं में नहा गया
तेरी बात भी क्या बात थी
बस मोगरे का फूल थी ।
तुने मुझको ऐसे फ़ना किया
ज्यूँ मैं रास्ते का गुबार था
मैंने वो भी सर से लगा लिया
तेरे पाँव की जो धूल थी ।
मुझे काफिये की ख़बर नही
ये बहर है क्या नही जानता
मैं वो ही लिखता चला गया
जो जिस्त के माकूल थी ।
Thursday, September 10, 2009
खुशफ़हमी
Wednesday, September 9, 2009
एक ही भूल
हूक ये मुझसे निकल कर तेरे दिल मे जा बसेगी ।
तेरी धुन ने ही सदा मब्हूत घूमता हूँ मैं।
तेरे दीवाने पे एक दिन देखना दुनिया हँसेगी ।
रौशनी बातों की मेरे याद आएंगी तुम्हे भी
तीरगी तन्हाईयों की जब कभी तुमको डसेगी ।
गैर को कुछ भी बता दो मेरी हालत का सबब
सामने मेरे जुबां तो लड़खड़ाएगी फंसेगी ।
दोस्त इस रंग ऐ जहाँ को तुमने देखा ही कहाँ है
आज तो सर पे रखा है, कल यही ताने कसेगी ।
मब्हूत- भ्रमित
बद बख्त
Thursday, September 3, 2009
तुम्हारे बाद .........

Tuesday, September 1, 2009
एक बदनज्म

वहीँ से शाम ढले परिंदों को दूर जाते और फ़िर,
धुंधलके मे खो जाते भी देखा था
"छोटी" की बेमानी बातों पर हंसा भी बहुत.
बगल की छत पर खड़ी लड़की की शोख आँखें भी भली ही लगी थी .
देर तक, न जाने कितनी ही देर तक बैठा रहा ।
अपनी फॅमिली एल्बम देखता रहा
आज माँ बहुत याद आ रही थीं .
नीचे कमरे से रह रह कर तुम्हारी आवाज आ जाती थी
पर तुम नही आयीं ...........................
तुम्हारी सब मजबूरियां जायज है जान
मगर तुमने ये कभी सोचा की,
जाने कितने काले कोस चल के कोई तुमसे,सिर्फ़ तुमसे मिलने आया था
परिंदे मेरी छत से भी दिखतें हैं
जीना - stairs
Monday, August 31, 2009
love......... opium of life

मैं तो माज़ी में जिया करता हूँ ।
जब तुम्हे भूल ही नही सकता
क्यूँ ये कोशिश ही किया करता हूँ ।
एक वो रात और लब ए शीरीं
अब भी वो जाम पिया करता हूँ ।
तज़किरा जब हुआ क़यामत का
मैं तेरा नाम लिया करता हूँ .
क्यूँ गया था मैं तेरी गलियों में
ख़ुद को ही दोष दिया करता हूँ .
आप ही जख्म हरे करता हूँ
आप ही जख्म सिया करता हूँ .
माज़ी-past
तज़किरा- mention, जिक्र
Friday, August 28, 2009
पशेमानी......penitence

Tuesday, August 25, 2009
WHY ME.......

मेरे व्यक्तित्व की ढेरों तहें हैं
और उसके एक तह में घर तुम्हारा।
जो एक अस्तित्व है अज्ञेय मेरा
है उसका एक एक अक्षर तुम्हारा।
मेरा दिल अब भी है तेरी ही जद में
लगा है फ़िर वहीँ नश्तर तुम्हारा.
वो जिसको मैं कहा करता था पत्थर
कहाँ है आज वो इश्वर तुम्हारा.
तुम्हारी आँखें जिसका आशियाँ थी
है वो ही दोस्त अब बेघर तुम्हारा।
Monday, August 24, 2009
दर्द तन्हा है

जो लोग मेरे साथ थे
वो जिनकी मुझे आस थी
लोग भी बदल गए
तुम भी चली गयी प्रिया।
जो हमने देख रखे थे
कितने सहेज रखे थे
वो सारे स्वप्न जल गए
तुम भी चली गयी प्रिया।
मुझको तलब है नींद की
नींद भी इन आँखों से
अब रास्ते बदल गए
तुम भी चली गयी प्रिया।
मेरे साथ ही होता है क्यों
अब तुमसे मैं क्या क्या कहूँ
खुशियाँ,सुकून,चाय तक
मुझे छोड़ दर असल गए
तुम भी चली गयी प्रिया।
missing you my love.
Saturday, August 22, 2009
दुष्यंत ...तुम्हारे लिए

Friday, August 21, 2009
THE AFTER EFFECT

Wednesday, August 19, 2009
दिल्ली ( जैसा मैंने समझा)
यहाँ ईसा कि कीमत है
यहाँ इन्सां बिकाऊ है
अजब यह शहर है
इसकी रवायत सीखनी होगी।
यहाँ पर जुर्म गुरबत है
महज बातों मे निस्बत है
जियां ओ सूद आदत है
ये आदत सीखनी होगी।
यहाँ पानी कि कीमत है
फकत पैसा ही जीनत है
नही आती अगर तुमको
तिजारत सीखनी होंगी।
यहाँ शमशीर रिश्तों पर
यहाँ हर चीज किस्तों पर
लफ्ज़ ए इमां किताबी है
कहावत सीखनी होगी ।
रवायत- ढंग, तरीका,
गुरबत- गरीबी
निस्बत - संबंध ,RELATIONS
जियां ओ सूद- PROFIT AND LOSS
तिजारत- BUSINESS
शमशीर- तलवार
लफ्ज़ ए इमां- THE WORD HONESTY.
Tuesday, August 18, 2009
फ़िक्र ओ नजर ( POINT OF VIEW)
खफा मैं बेसबब ही था तुमसे
तुम्हारी अपनी ही मजबूरियां है।
कभी जो फासले थे, अब नही हैं
मगर अब कुरबतों की दूरियां हैं।
बहुत हम दोनों में चाहत है लेकिन
बहुत हम दोनों में मगरूरियां हैं ।
कभी जो खेलती थी धडकनों से
अब उन आँखों में बेनूरियां हैं ।
न हो हैरान कि मै पीता नही हूँ
कि मुझको जीस्त कि मख्मूरियां हें।
.
khalish

कोई और देखे तो मुझको असर क्या
जो हासिल किया है वो तुमने दिया है
कोई और दे दे तो शम्श ओ कमर क्या ।
तुम्हारे ही क्लिप से लिखा नाम जिस पर
अब भी खुदे है वो जेर ओ जबर क्या ।
तले जिसके अक्सर, रहे पहरों बैठे
अब भी खड़ा है ,वही वो शजर क्या ।
हैं ये लफ्ज सारे तुम्हारे सहारे
तुम्हारे बिना जान मुझमे हुनर क्या।
है हासिल बहुत कुछ, है मंजिल भी पाई
जो तुम संग न गुजरी तो फ़िर वो सफर क्या.
Sunday, August 16, 2009
तीन वर्ष
ख्याल ए यार कि हर इब्तिदा तो यक सी थी,
नसीम ए सुब्ह, कुछ अख़बार और अवधेश की चाय। (नसीम ए सुब्ह-सुबह की ठंडी हवा)
तुम्हारे साथ गुजारे थे जो बेफिक्री के din,
ना कर वो जिक्र मेरे दोस्त, कि हाय।
लगा करे था कि किसने मजाक कर ड़ाला,
agarche बात पढाई कि कभी आ जाय।
बेसबब बेलौस हंसा करते थे मानिंन्द ए पागल,
के अब तो ढूँढ़ते रहते ही,अमाँ कोई हंसाय।
अता हुए थे जिन्दगी के महज तीन बरस,
जो बच गयी है, सजा है, निपट लिया जाये.
satya a vagrant.......
Sunday, August 2, 2009
Navarambh
क्या खाक मदावा ए गम ए हिज्र करोगी
तुम मेरी मुहब्बत को समझ ही नही सकती।
जब तक की मुहब्बत की हकीकत को ना समझो
फनकार की चाहत को समझ ही नही सकती।
( मदावा ऐ गम ऐ हिज्र- गम ऐ जुदाई की दवा )
anaam)
मित्रों यह ब्लॉग मेरे अप्रकाशित ( परन्तु शीघ्र प्रकाश्य) कविताओं का सॉफ्ट कॉपी है। आशा है
आपको पसंद आयेगी। आपके कमेंट्स का सदैव स्वागत एवं इंतजार रहेगा
( सत्य व्यास)