
वक्ते रुखसत काम ये अदना सा कर जाता
एक दफा पीछे पलट कर देख कर जाता ।
कलम जो ना साथ होती तो किधर जाता
लिख नही पाता तो शायद घुट के मर जाता ।
ये तुम्हारी भूल थी, माना है तुमने, शुक्र है
वरना ये इल्जाम भी तो मेरे सर जाता ।
है टूटने का शौक मुझको किस्तों किस्तों मे
तुम जो ना मुझको पिरोते तो बिखर जाता ।
तेरे कूचे मे गुजारी मैंने अपनी एक उम्र
कौन सा चेहरा मैं लेकर अपने घर जाता
एक दफा पीछे पलट कर देख कर जाता ।
कलम जो ना साथ होती तो किधर जाता
लिख नही पाता तो शायद घुट के मर जाता ।
ये तुम्हारी भूल थी, माना है तुमने, शुक्र है
वरना ये इल्जाम भी तो मेरे सर जाता ।
है टूटने का शौक मुझको किस्तों किस्तों मे
तुम जो ना मुझको पिरोते तो बिखर जाता ।
तेरे कूचे मे गुजारी मैंने अपनी एक उम्र
कौन सा चेहरा मैं लेकर अपने घर जाता
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