
जिस्म मे बे शक्ल सा नश्तर उतर जाता है तब
वो आशना चेहरा ख्यालों मे उभर आता है जब ।
पूछिये मत हाल मेरे गैरत ओ पिन्दार का
बात से अपनी हमेशा वो मुकर जाता है जब ।
अपनी ही आँखों मे थोड़ा और गिर जाता हूँ मैं
आजकल ऑंखें बचाकर वो गुजर जाता है जब ।
तब गुमाँ होता है मैंने आज भी कुछ खो दिया
याद मे तेरी निकल अन्तिम पहर जाता है जब ।
तब दुआ ही काम आती है मरीज ऐ हिज्र को
खाली दवा ओ शफा का हर असर जाता है जब ।
आशना- parichit
गैरत ओ पिन्दार- स्वाभिमान
दवा ओ शफा-medicine and treatment
बेहतरीन!! बहुत खूब!!
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