
तुम्हे वह रसोई याद है ?
सरकारी क्वार्टर की छोटी सी रसोई।
याद है - मैं तुम्हारी रसोई मे बैठा अल सुबह
कितनी अनरगल बातें कर रहा था .
क्रिकेट,फिल्म, पॉलिटिक्स
जाने क्या क्या ।
याद है- मेरे जाने की ख़बर सुन कर
कितनी ही देर से तुम चुपचाप
प्याज़ के बहाने आंसू बहा रही थी
और मैं कम अक्ल इस मुगालते मे,
कि तुम मुझे सुन रही हो
तभी दफअतन घूम कर
तभी दफअतन घूम कर
तुम मुझसे लिपट गयीं
और बे तहाशा रोने लगीं. याद है
तुम्हे चुप कराने कि सारी कवायद बेकार।
याद है .
तुम्हे ख़ुद से अलग करते वक्त मैंने देखा की
कि मेरे बाएं सीने पर
तेरहवीं पसली के पास्
नमकीन पानी का एक सोता खुल गया है ।
आज एक अरसा बीत गया है
तुम्हारे आंसू जम गए हैं , मिटते ही नही
थम गये है हटते ही नहीं
जानती हो क्यूँ ?
तेरहवीं पसली के नीचे,
ठीक नीचे
दिल होता है ना .
बहुत भावुक कविता... क्या इतना मासूमियत अब भी बांकी है ? लोग तो खूंखार हो जाते हैं... बहुत दर्द है इस कविता में...
ReplyDeletebahut accha likha hain
ReplyDeleteekdam saaf saaf
aise hi kavitaye likha karo
acchi lagti hai
sushma
तेरहवी पसली के नीचे दिल ... वाह । कविता मे ऐसे ही तथ्यात्मक प्रयोग करने चाहिये लेकिन जानकार लोगो से पूछ्कर
ReplyDeleteतेरहवीं पसली के पास
ReplyDeleteनमकीन पानी का एक सोता खुल गया है...
अच्छा लगा...
धन्यवाद
JAANTE HO KYON...
ReplyDeleteTEHERVI PASLI KE NEECHE
DIL HOTA HAI ...
VAAH .... BAHOOT HI BHAAVOK... KAMAAL KA LIKHA HAI ... LAJAWAAB BIMB HAI ... KAHNE KA ANDAAZ, MAN MEIN UTHTE BHAAV.... BAHOOT HI ACHEE RACHNA ...
bahut hi sunder rachna.....
ReplyDeletekavita padh rahi thi...ek bimb tair rahaa tha saamne..aansoo beh rahe hai..lipatna..kavita k ant ne..man ko bhavuk kar diya...shabdheen hoon..kya kahoon....bhavpurn rachna hai...
ReplyDelete