
मेरे व्यक्तित्व की ढेरों तहें हैं
और उसके एक तह में घर तुम्हारा।
जो एक अस्तित्व है अज्ञेय मेरा
है उसका एक एक अक्षर तुम्हारा।
मेरा दिल अब भी है तेरी ही जद में
लगा है फ़िर वहीँ नश्तर तुम्हारा.
वो जिसको मैं कहा करता था पत्थर
कहाँ है आज वो इश्वर तुम्हारा.
तुम्हारी आँखें जिसका आशियाँ थी
है वो ही दोस्त अब बेघर तुम्हारा।
aapki lekhni evam vichar har yuva ke vichar evam udgar lagte hain ..
ReplyDeletekeep it up sir.
Purani yaade jo ab tak dil ke tahkhano me kaid ho gayee thi, aapne phir se unhe tazza ker diya....
ReplyDeleteKripya aap aise he likte rahe.....