शाख से टूटे तो फिर मर जाएँगे पत्ते
फूलों की नुमाईश मे बिखर जाएंगे पत्ते
मालिक ने भी फूलों को ही तो सर पे चढ़ाया
है मतलबी माली तो किधर जाएँगे पत्ते |
फूलों की बेरुखी के हश्र का सवाल था
मेरा था ये जवाब कि झर जाएँगे पत्ते
बारिश ये रहमतों की तो बस एक फ़रेब है
तुम देखना ओसों से सँवर जाएँगे पत्ते
तुमको है ये गुमाँ कि शहर दिल्ली दूर है
मुझको है ये यकीन कि शहर जाएँगे पत्ते
फूलों के बेरुखी के हश्र का सवाल था
ReplyDeleteमेरा था ये जवाब कि झर जाएँगे पत्ते ..
जबरदस्त शेर ... पूरी गज़ल धमाल मचा रही है ...
"mujhko hai yakeen ki shehar jayengay pattey"
ReplyDeletekya khub bhaut acha.......
bahut khoob sir.. bahut khoob ...
ReplyDelete-Mayank Goswami
Kya baat hai Sir, aaj kaal aap busy hai kya ? Kuch naya nahi mila padne ko bahut dino seee
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत सुंदर रचना है |
ReplyDeleteमेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें |
बस एक बात सोच में डाल रही है कि कविता कब से दलित होने लगी |
ReplyDeleteआशा
मुझे भी समझ नहीं आता -दलित कविता क्या है ? दलित साहित्य क्या है ?कविता कविता है साहित्य साहित्य है / रचना बढ़िया है !
ReplyDeleteनई पोस्ट वो दूल्हा....
नई पोस्ट हँस-हाइगा
बहुत गरीब कविता :)
ReplyDeletewaahh lajawab ... ek ek sher umda ..ek ko achha kahu to dusre ki touheen .. badhayi
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