उसी युकिलिप्टस पे मेरा नाम दुबारा लिख सकते हो?
नही.
क्यूँ? जगह नही बची?
वजह नही बची.
अच्छा. अब भी दिन के एक खत बिला नागा लिखते हो?
नही?
फिर? क्या करते हो ?
एक्सेल की शीटेँ भरता हूँ.
गजल तो लिखते होगे?
उन्हू.
क्या आशनाई खत्म हो गयी?
रोशनाई खत्म हो गयी.
सालाना उर्स मे जाते हो?
नहीँ.
क्या फुर्सत नही होती?
जुर्रत नही होती.
अब कभी तुमसे मिलना मुमकिन है?
नही.
एहतियातन भी नही?
इत्तिफाकन भी नहीं.
अच्छा............ मुझे मुआफ कर पाओगे?
अच्छा............ मुझे मुआफ कर पाओगे?
नही.
क्या मेरा गुनाह ना काबिले माफी है?
तुमने गुनाह कहा,इतना ही काफी है .
शानदार पोस्ट
ReplyDeleteवज़ह नहीं बची...
ReplyDeleteरौशनाई खत्म हो गई...
जुर्रत नहीं होती...
वाकई लाज़वाब कर दिया...
एक अलग ही अंदाज़ है।
ReplyDeleteआपकी समझ प्रभावित करती है।
शुक्रिया।
बेहतरीन...बहुत उम्दा!
ReplyDeletewahji bahut khoob
ReplyDelete'क्या मेरा गुनाह ना काबिले माफी है?
ReplyDeleteतुमने गुनाह कहा,इतना ही काफी है .'
माफ़ करने का तरिका भी लाजवाब है,,
और 'सवाल ओ जवाब ' भी!!!!!
AWAMISH P DUBEY
रोचक सवाल जवाब ......!!
ReplyDeletesahi baat kabhi jagah nahi bachti or kabhi vajah nahi...
ReplyDeleteवाह वाह - लाजवाब प्रस्तुति
ReplyDeletetoo gud!
ReplyDeletebhai jaan apne school ke din yaad aa gaye............. hamne bhi bahut sari payar bahri baate liki hai is peed pe... jo ki ham kiski ko bol nahi paye
ReplyDeleteawesome...
ReplyDeleteu just gave words to my feelings..
bahut badhiya hai
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