तुम्हारे ज़ाए ने तुम्हे माँ कहा है
आज तुमने पूर्णत्व को छुआ है .
अपने प्रारंभ में तुम किसी के घर की लक्ष्मी हुई.
समझने की उम्र में खुद को फलां की बेटी जाना.
भईया की बहन होने में भी कोई षड्यंत्र नहीं था
सुरक्षा ही थी कदाचित .
स्कूलों में भी हाजिरी के "यस सर" तक सीमित थी तुम .
शीशे में खुद को पहचानने के दिनों में
शोहदों ने कुछ नाम भी दिए होंगे तुम्हे .
(मैंने भी एक नाम दिया था याद है तुमको)
फिर शहनाईयों के शोर ने मोहलत न दी होगी
बहू, दुल्हन या फिर भाभी की आदी हो गयी होगी ।
मगर तुम फिर भी खुश हो क्योंकि,
तुम्हारे ज़ाए ने तुम्हे माँ कहा है
आज तुमने पूर्णत्व को छुआ है.
सुनो मेरा कहा मानो
कि अब तो खुद को पहचानो
और उस दिन से हिरांसा हो
वो जिस दिन पूछ बैठेगा
तुम्हारा नाम क्या है माँ?
ओहो...क्या लिख गये हैं आप...
ReplyDeleteआखिरी पंक्तियों ने शरीर में झुरझुरी पैदा कर दी...
प्रचलन से हटके जज़्बातों और स्त्री की अपनी पहचान को टटोलते शब्द...
तुम्हारा नाम क्या है...माँ...?
सुनो मेरा कहा मानो
ReplyDeleteकि अब तो खुद को पहचानो
और उस दिन से हिरांसा हो
वो जिस दिन पूछ बैठेगा
तुम्हारा नाम क्या है माँ
आखरी पंकतिया पंच lines है.
आखिरी कि पंक्तियाँ शरीर में झुरझुरी ही नहीं ,दिमाग में खलबली भी मचाती है.
ReplyDeleteऔर
और काफी कुछ सोचने पे मजबूर करती है...
स्त्री -पछ का एक अदृश्य पहलु प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद...!!
AWANISH P DUBEY
सुनो मेरा कहा मानो
ReplyDeleteकि अब तो खुद को पहचानो
और उस दिन से हिरांसा हो
वो जिस दिन पूछ बैठेगा
तुम्हारा नाम क्या है माँ?..
स्त्री स्त्री न हो कर कुछ और भी है ... इस सत्य को स्त्री जानती है .. तभी तो धैर्य रखती है पूर्ण होने तक ... माँ होने तक .. बहुत अच्छा लिखा है ..
ख़्यालों और ख़ाबोम की महक छुपी है!
ReplyDeleteअच्छा लगा इस रचना से रु-ब-रु हो हर.
ReplyDelete-
और ये सपने अभिशप्त क्यूँ है भाई? (शायद ऐसा ही होता है)
oho bahut umda...bada dilchhuaak tha...
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ReplyDeleteएक सत्य को बहुत खूबसूरती से उकेरा है,
पूर्णत्व की प्रतीक स्त्री ताउम्र अनाम क्यों रह जाती है ?
उसे अपनी पहचान के लिये दूसरों के नाम से जुड़ते और टूटते रहना होता है ।
ख़्यालों को आँदोलित करने की सीमा तक खूबसूरत चित्रण !
जैसे बहुत से लोग ने कहा,इस काव्य की आखिरी पंक्ति दिल को छू गयी
ReplyDeleteपूछेगा तेरा नाम क्या है माँ
Aaj is baat ka ehsas ho raha hai ke Tumhare ander kafi kuch jwaar/bhata hai jo ab bahar nikalne ko betab ho raha hai.
ReplyDeleteMain bhi sabse sahmat hoo ki "aakiri pankti dil ko choo gaye".
Sahi ja raste per rahe ho.
Tumhara ek Gumnam College Friend (bahut jaldi samne aaunga)
bhai der se aane ke liye maaffi cahta hun... bt ab time se aunga or contzz dunga...
ReplyDeletebahut accha likha hai mere dost......
kya khub likha hai aapne,kya likhu mai mere paas alfaz nahi hai,
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