Thursday, February 18, 2010

सलासिल

हरेक भागता लम्हा सम्भाल रखा है
बाद तेरे, तुझे लफ्जोँ मे ढाल रखा है

हम सपेरे भी नही, ना कोई फन आता है
ना जाने क्युँ तुझे आस्तीँ मे पाल रखा है

तेरी बातेँ भी रहेँ और तू बा पर्दा रहे
हमने इसका भी हमेशा खयाल रखा है

गफलतेँ तो मिट गयी तुम्हे मिल के
गुजस्ता वक्त का थोडा मलाल रखा है

बिना हमारे, तुम हमारे बाद कैसे हो ?
बडा ही ला जवाब सा सवाल रखा है

4 comments:

  1. हम सपेरे भी नही, ना कोई फन आता है
    ना जाने क्युँ तुझे आस्तीँ मे पाल रखा है
    वाह बहुत सुन्दर.

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  2. बेहतरीन प्रस्तुति
    बिना हमारे, तुम हमारे बाद कैसे हो ?
    बडा ही ला जवाब सा सवाल रखा है
    बधाई ................

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  3. बिना हमारे, तुम हमारे बाद कैसे हो ?
    बडा ही ला जवाब सा सवाल रखा है

    सच में बड़ा ही ग़ज़ब का सवाल है ....... कमाल के शेर हैं इस ग़ज़ल में .....

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  4. Yeh ghazal toh chhoo gayi. Bahut hi achhi hai

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