अपने सारे अरमानोँ की पोटली बनायी थी
और थोडी सी नम जमीन देख के
दफन कर आया था उन्हेँ.
एक पत्थर रख आया था उपर
एक वचन भी लिया था खुद ही से
कभी न लौट के आने का
इस मजार पे दुबारा।
और जैसे भूल जाता हूँ पौलिसी भरना
बिसर गयी थी यह भी बात.
समय चक्र पूरा हो गया है
और नियती का खेल भी है ...
वहीँ खडा हूँ तुम्हारे साथ
बहुत कुछ बदल गया है ना!
देखो पत्थर को चीरकर
कुछ मोगरे खिल गये है वहाँ
जहाँ दबी पडेँ हैँ कुछ खत,
ट्रेन के टिकट और मैँ ........
चलो कहीँ और चलते हैँ....
जानता हूँ तुम्हे मोगरे पसन्द नहीँ हैँ
मेरे अरमानोँ की तरह .
चलो कहीँ और चलते हैँ....
ReplyDeleteजानता हूँ तुम्हे मोगरे पसन्द नहीँ हैँ
मेरे अरमानोँ की तरह ...
बहुत लाजवाब प्रस्तुति है ... और अंदाज़ भी ... भूलना पॉलिसी की तरह ...
अरमान कभी मरते नही .. ये भी सच है .. फिर अगर उन्हे मोंगरे के फूल पसंद नही तो क्या ... बहुत शशक्त ...
bahut dhanyawad digambar jee
ReplyDeleteyahi hai zindagi.narayan narayan
ReplyDeleteबेहतर...
ReplyDeleteअरमान...और मोगरे...
kash kam se kam dafan karne ki bhi himmat hoti.....bilkul dil ko cheer diya hai aapki kavita ne.....
ReplyDeleteBAHUT KHUB BEHTARIN BHAWNAYEN HAI
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