Wednesday, February 9, 2011

MOHEN- JO -DARO


अभी तो चमका था तुम्हारी अंगुश्तरी का नीलम

अभी तो लेटी थी तुम मेरे शानों पर


मै तो लिख ही रहा हूं तुम्हारा नाम शीशम पर

अभी तो भूले थे तुम अपने कान के बुदें

अभी तो ताज को जेरे बहस बताया था


अभी तो पराठे कि जिद की थी मैंने


और दिखाई थी तुमने आँखें


अभी तो रो रही थी तुम गिलहरी के मरने पर


और हंस रहा था मै ELLE-18 की ज़िद पर


अभी तो अपनी सहेली से बचा लाई थी मुझे


क्युंकि उसे आता था काला जादू


अभी तो मेरे घुटनो पे सर रख कहा था


"जब तक नही आओगे मै रोउंगी नही"


अब जो आया हूं तो


तारीख मुझपे हंसती है


ग्यारह सालों के ताने कसती है


क्या सच मे ग्यारह साल बीत गये! सच बताना।


हां एक सच और बताना


कोई कह रहा था


" वो रुखसती पर भी नही रोई थी"।



अंगुशतरी- अंगुठी


शानों- shoulder


जेरे बहस- बह्स का मुद्दा


रुखसती- विदाई


5 comments:

  1. sathya ji... aap sach me achcha likhte aur badi baat ye hai ki jo hai wo likhte ho... kayal hoon main aapka :)

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  2. Kya baat hai satya prakash G, Bilkul sahi raste per ja rahe hai aap.

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  3. hamesha ki tarah wahi purani sikayat kafi kam likhne lage hai aap..aisa na kare aapki kavita se kafi log apni zindagi jodte hai...apna nahi to kam se kam dusro ka to khaiyal kare..hope to get some great poetries soon..best of luck bhaiya

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