Saturday, December 5, 2009

I=F/T

तब जबकि तुम नही थे ॥

मैं स्कूली किताबों मे गर्क था

इतना कि आँखें ख़ुद को

यतीम मान बैठीं थीं

खैर! एक शै तब भी

मेरे समझ के बाहर थी

आवेग

"यह किसी चीज पर

बहुत कम समय मे लगे

बल कि प्रतिक्रिया है "

फ़िर तुम आयीं

बहुत थोड़े समय के लिए

फ़िर चली गयीं।

अपने भीतर कुछ महसूस किया

फ़िर इस "कुछ" कि आदत हो गई।

अब जबकि तुम नही हो

एक दिन पड़ोसी के लड़के ने मुझसे पुछा

भइया ! what is impulse ?

और मुझे बे साख्ता तुम याद आ गई

सच है !

कुछ तालीम किताबों से नही

अज़ाबों से मिलती है।

5 comments:

  1. कुछ तालीम किताबों से नही ......अज़ाबों से मिलती है .........
    ये सच्चाई है जीवन की ......... इंसान जितना कुछ समय और जिंदगी से सीखता है और किसी से नही ..... आपकी कविता में कमाल की बैचानी है ... कोई प्यास है जो महसूस की जा सकती है .........

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  2. Bahut Badhiya Satya... bilkul sahi kathan 'kuchh taalim kitabo se nahi, ajaabo se milti hai... wah!!

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  3. जी हाँ ...ये दर्द बहुत कुछ सिखा जाते हैं हमें ......ये पीडाएं तालीम दे जातीं हैं हमें जीवन जीने की .....!!

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  4. बहुत खूब बेहतरीन रचना
    आभार

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