
मैं तो माज़ी में जिया करता हूँ ।
जब तुम्हे भूल ही नही सकता
क्यूँ ये कोशिश ही किया करता हूँ ।
एक वो रात और लब ए शीरीं
अब भी वो जाम पिया करता हूँ ।
तज़किरा जब हुआ क़यामत का
मैं तेरा नाम लिया करता हूँ .
क्यूँ गया था मैं तेरी गलियों में
ख़ुद को ही दोष दिया करता हूँ .
आप ही जख्म हरे करता हूँ
आप ही जख्म सिया करता हूँ .
माज़ी-past
तज़किरा- mention, जिक्र