
तुम्हे वह रसोई याद है ?
सरकारी क्वार्टर की छोटी सी रसोई।
याद है - मैं तुम्हारी रसोई मे बैठा अल सुबह
कितनी अनरगल बातें कर रहा था .
क्रिकेट,फिल्म, पॉलिटिक्स
जाने क्या क्या ।
याद है- मेरे जाने की ख़बर सुन कर
कितनी ही देर से तुम चुपचाप
प्याज़ के बहाने आंसू बहा रही थी
और मैं कम अक्ल इस मुगालते मे,
कि तुम मुझे सुन रही हो
तभी दफअतन घूम कर
तभी दफअतन घूम कर
तुम मुझसे लिपट गयीं
और बे तहाशा रोने लगीं. याद है
तुम्हे चुप कराने कि सारी कवायद बेकार।
याद है .
तुम्हे ख़ुद से अलग करते वक्त मैंने देखा की
कि मेरे बाएं सीने पर
तेरहवीं पसली के पास्
नमकीन पानी का एक सोता खुल गया है ।
आज एक अरसा बीत गया है
तुम्हारे आंसू जम गए हैं , मिटते ही नही
थम गये है हटते ही नहीं
जानती हो क्यूँ ?
तेरहवीं पसली के नीचे,
ठीक नीचे
दिल होता है ना .