सत्य व्यास की कवितायें
यहीं पे मुक्कद्दर की बात आ गयी है. यहीं पे नसीबों से काम आ पड़ा है. मुझे खोदना है पर्वत से दरिया, तेरे सामने भी तो कच्चा घडा है.
Tuesday, September 4, 2012
एक दलित कविता
Tuesday, December 27, 2011
अधूरा सा कुछ
मफलर का एक शिरा फंस गया हो जैसे
ठीक वैसे
यादें उघडतीं जाती है
यादें तब कि
जब भूला जाया करता था Y2K समस्या
और याद रहते थे मीर ओ बशीर
यादें तबकि
जब तुम्हारी जुल्फें लम्बी थीं
और परेशानियां छोटी
यादें तबकि
जब कीन्स और pareto बोझिल थे
और इन्हें बांचने वाले बेदिल
यादें तबकि
जब दोस्तों ने पहली दफा दिखाए थे सिगरेट के छल्ले
और तुमने पहली दफा दिखाई थी आँखें
यादें तबकि
जब प्याज पर गिरती थी सरकार
और प्यार पर उठते थे तलवार
यादें तबकि
जब जमीन पैरों का गुलाम था
और आसमान सपनों का पड़ोसी
यादें तबकि
जब तुमने बदली थी निगाहें
और हमने बदला था शहर
याद की तासीर अब भी कायम है
तेरे मफलर सा ही मुलायम है
फर्क इतना है कि किरदार बदल लिए हमने
अब तुम मेरी कहानियों मे परी हो
और मै तुम्हारे अफसानों मे राजकुमार
Monday, March 21, 2011
RAINBOW........ THE COLORS OF LIFE.
तुमने पूछा है, मुझे रंग से परहेज है क्यों
तुमपे फबते है रंग, फिर भी ये गुरेज है क्यों
मै बताऊ भी तो क्या तुम ये समझ पाओगे
तुमपे गुजरा ही नहीं कैसे समझ पाओगे
तुमने देखा ही नहीं ख्वाब का पीला पड़ना
तुमको मालूम है क्या सब्र का ढीला पड़ना
तुमने जाना ही नहीं जख्म का हरा होना
कैसे समझोगे फिर दिल का मकबरा होना
तुमने देखा ही नहीं दर्द के नीलेपन को
तुमने देखा ही नहीं घर के कबीलेपन को
तुमपे गुज़री ही नहीं हिज्र की काली रातें
तुमने देखी है कोई आस से खाली रातें
डोरे आँखों के ये लाल से क्यूँ रहते है
ख्वाब आँखों मे पड़े बाल से क्यूँ रहते हैं
उसकी यादों की तरह आके छले जाते है
इसी वजह से ऐ दोस्त, मुझे रंग नहीं भाते है
Wednesday, February 9, 2011
MOHEN- JO -DARO
अभी तो चमका था तुम्हारी अंगुश्तरी का नीलम
अभी तो लेटी थी तुम मेरे शानों पर
मै तो लिख ही रहा हूं तुम्हारा नाम शीशम पर
अभी तो भूले थे तुम अपने कान के बुदें
अभी तो ताज को जेरे बहस बताया था
अभी तो पराठे कि जिद की थी मैंने
और दिखाई थी तुमने आँखें
अभी तो रो रही थी तुम गिलहरी के मरने पर
और हंस रहा था मै ELLE-18 की ज़िद पर
अभी तो अपनी सहेली से बचा लाई थी मुझे
क्युंकि उसे आता था काला जादू
अभी तो मेरे घुटनो पे सर रख कहा था
"जब तक नही आओगे मै रोउंगी नही"
अब जो आया हूं तो
तारीख मुझपे हंसती है
ग्यारह सालों के ताने कसती है
क्या सच मे ग्यारह साल बीत गये! सच बताना।
हां एक सच और बताना
कोई कह रहा था
" वो रुखसती पर भी नही रोई थी"।
अंगुशतरी- अंगुठी
शानों- shoulder
जेरे बहस- बह्स का मुद्दा
रुखसती- विदाई
Monday, February 7, 2011
उम्मीदें, उम्मीद से हैं
उधडे यादों को फिर एक बार रफू करना है
जो रह गया था वही, फिर से शुरु करना है।
ख्वाब बुनने की आदत है सो जाती ही नहीं
सोचते रहते हैं यूं करना हैं, यूं करना है
बूढे बरगद से तेरा नाम मिटा आये है
बेवजह ही तुझे बदनाम भी क्यूं करना है।
ज़ेहन को फिक्र 'तू मेरी बुरी आदत है '
मैने ठाना कि इस आदत ओ जूनूं करना है
दिल को लगता है तू आएगा पशेमां एक दिन
दिल का क्या है इसे हर हाल सुकूं करना है ।
ज़ेहन- दिमाग
पशेमां- पछतावा
(चित्र गूगल से साभार)
Tuesday, December 28, 2010
मचान
( मित्रों से क्षमा । जिनकी इतनी अच्छी पार्टी के बाद मैने सोगवार लिखा)
Tuesday, October 19, 2010
न जुनूँ रहा ...न परी रही
देखना तुम्हारी हथेलियों कों,
और बताना झूठे भविष्य ।
सताना तुम्हे और कहना,
कि मरोगी तुम छोटी उम्र मे ही ।
कहना तुम्हारा कि
"जानती हूँ"।
बस ये बता दो कैसे?
चूमना उंगलियाँ और कहना मेरा
कि हठात योग है
किसी फसाद में
विश्वासघात से या फिर
बिना किसी कारण ही।
हंसना तुम्हारा और कहना कि
"फसाद मे मरना
अवसाद मे मरने से
कहीं बेहतर है।"
" और श्वास का टूटना
विश्वास के टूटने से कहीँ अच्छा"।
फिर रुआंसा होना तुम्हारा
और कहना
"मैं तुम्हारे साथ बूढी होना चाहती थी"।
सबकुछ खत्म नहीं हुआ प्रिय...........
बस तुम बिन बूढा होना,
विश्वासघात सा लगता है।
(अवनीश को धन्यवाद...जो मुझे याद दिलाते हैँ कि, लिखना, जिवीत रहने की अनुभुति है)