
तुमने पूछा है, मुझे रंग से परहेज है क्यों
तुमपे फबते है रंग, फिर भी ये गुरेज है क्यों
मै बताऊ भी तो क्या तुम ये समझ पाओगे
तुमपे गुजरा ही नहीं कैसे समझ पाओगे
तुमने देखा ही नहीं ख्वाब का पीला पड़ना
तुमको मालूम है क्या सब्र का ढीला पड़ना
तुमने जाना ही नहीं जख्म का हरा होना
कैसे समझोगे फिर दिल का मकबरा होना
तुमने देखा ही नहीं दर्द के नीलेपन को
तुमने देखा ही नहीं घर के कबीलेपन को
तुमपे गुज़री ही नहीं हिज्र की काली रातें
तुमने देखी है कोई आस से खाली रातें
डोरे आँखों के ये लाल से क्यूँ रहते है
ख्वाब आँखों मे पड़े बाल से क्यूँ रहते हैं
उसकी यादों की तरह आके छले जाते है
इसी वजह से ऐ दोस्त, मुझे रंग नहीं भाते है
तुमने देखा ही नहीं ख्वाब का पीला पड़ना...
ReplyDeleteक्या खूब...
bahut khub bhai,rangon ka asali rang dikhaya hai tumne bahut achche
ReplyDeleteख्वाब का पीला पड़ना और दिल का नीला रंग अच्छे लगे...
ReplyDeleteTHANKS RAVI JI, PINKI DI, AND DIMPLE .. :)
ReplyDeleteतुमने देखा ही नहीं दर्द के नीलेपन को
ReplyDeleteतुमने देखा ही नहीं घर के कबीलेपन को
superb as usual bhaiya itna intezar mat karwa kariye ek ek poetry ke liye pls...grttt...dard aur akelapan ko ek saath prastut kiya...simply grt...sonu
सुनो तुम फ़िक्र मत करना
ReplyDeleteतुम्हे जाना है, तुम जाओ ।
मगर एक बात सुन जाओ
मैं ये फिर कह न पाउँगा
"मैं तुम बिन रह ना पाउंगा "
"मैं तुम बिन रह ना पाउंगा"
aapki kavita ki lines aapke liye pata nahi kyu likha but likh diya...sonu
behtar...
ReplyDelete