
देखना तुम्हारी हथेलियों कों,
और बताना झूठे भविष्य ।
सताना तुम्हे और कहना,
कि मरोगी तुम छोटी उम्र मे ही ।
कहना तुम्हारा कि
"जानती हूँ"।
बस ये बता दो कैसे?
चूमना उंगलियाँ और कहना मेरा
कि हठात योग है
किसी फसाद में
विश्वासघात से या फिर
बिना किसी कारण ही।
हंसना तुम्हारा और कहना कि
"फसाद मे मरना
अवसाद मे मरने से
कहीं बेहतर है।"
" और श्वास का टूटना
विश्वास के टूटने से कहीँ अच्छा"।
फिर रुआंसा होना तुम्हारा
और कहना
"मैं तुम्हारे साथ बूढी होना चाहती थी"।
सबकुछ खत्म नहीं हुआ प्रिय...........
बस तुम बिन बूढा होना,
विश्वासघात सा लगता है।
(अवनीश को धन्यवाद...जो मुझे याद दिलाते हैँ कि, लिखना, जिवीत रहने की अनुभुति है)