
उसी युकिलिप्टस पे मेरा नाम दुबारा लिख सकते हो?
नही.
क्यूँ? जगह नही बची?
वजह नही बची.
अच्छा. अब भी दिन के एक खत बिला नागा लिखते हो?
नही?
फिर? क्या करते हो ?
एक्सेल की शीटेँ भरता हूँ.
गजल तो लिखते होगे?
उन्हू.
क्या आशनाई खत्म हो गयी?
रोशनाई खत्म हो गयी.
सालाना उर्स मे जाते हो?
नहीँ.
क्या फुर्सत नही होती?
जुर्रत नही होती.
अब कभी तुमसे मिलना मुमकिन है?
नही.
एहतियातन भी नही?
इत्तिफाकन भी नहीं.
अच्छा............ मुझे मुआफ कर पाओगे?
अच्छा............ मुझे मुआफ कर पाओगे?
नही.
क्या मेरा गुनाह ना काबिले माफी है?
तुमने गुनाह कहा,इतना ही काफी है .