Thursday, May 13, 2010

सियाह नसीब

उम्र गुजरी है फकीराना मुहब्बत करते

तेरा ही जिक्र,तेरी फ़िक्र, तेरी आदत करते।

कहें कैसे कि कोई जुर्म ए मुहब्बत न करे

अगर न हमने की होती तो नसीहत करते ।

तेरी शरीर निगाहों ने बदगुमान किया

वगरना हम भला कब चाँद की चाहत करते।

तुम्हारे काँधे के तिल कों तीरगी देते

सियाह नसीब न होते तो हिमाकत करते ।

हमें खबर है हकीकत तेरे बहानों की

ख्याल ए इश्क न होता तो शिकायत करते ।

बदगुमानी मे तेरी बात शरियत समझी

जुनू मे तेरे लिखे कों ही वसीयत करते ।

शरीर -chanchal ,mischievous

तीरगी- darkness,

सियाह नसीब -ill fated, बदनसीब

7 comments:

  1. ये सबसे अच्छा शे'र लगा.

    कहें कैसे कि कोई जुर्म ए मुहब्बत न करे

    अगर न हमने की होती तो नसीहत करते ।

    जानते अगर अंजामे मुहब्बत ,
    लेते न कभी भूल से नामे मुहब्बत

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  2. बदगुमानी मे तेरी बात शरियत समझी
    जुनू मे तेरे लिखे कों ही वसीयत करते ...

    खूबसूरा शेर है ... जलवाब लिखा है ... प्यार में ऐसा अक्सर होता है ...

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  3. तेरी शरीर निगाहों ने बदगुमान किया

    वगरना हम भला कब चाँद की चाहत करते....


    बहुत खूब ........!!

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  4. काँधे के दिल को तीरगी.. खूब है!

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  5. हमें खबर है हकीकत तेरे बहानों की

    ख्याल ए इश्क न होता तो शिकायत करते ।

    ye sher ab mera hua..gud one..bhaiya....

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