Saturday, August 22, 2009

दुष्यंत ...तुम्हारे लिए


तुम जिसे ओढ़ते बिछाते थे

वो गजल ही हमें सुनाते थे

हर्फ़ देर हर्फ़ बे नजीर हो तुम

किसी ने सच ही कहा आखिरी कबीर हो तुम।


तुम रहे वक्त से सदा आगे

कोशिशें की , कि कोई तो जागे

कलम कि शक्ल में शमशीर हो तुम

किसी ने सच ही कहा आखिरी कबीर हो तुम ।


बहुत इंसानियत का हक अदा किया तुमने

महज अल्फाज़ से मोज़ज़ा किया तुमने

कभी मोमिन कभी ग़ालिब कभी मीर हो तुम

किसी ने सच ही कहा आखिरी कबीर हो तुम.

4 comments:

  1. श्री सत्या......!!
    'संवेदनाओं' में प्राण फुकने के लिए धन्यवाद ...!!!!
    आपकी कुछ एक रचनाओं को ही पढ़ कर ऐसा प्रतीत होता है कि ,धुंधली पड़ती हुई 'लेखनी कि अग्नि' को ,'जो कि हर एक आम शख्श कि आवाज़ है' उसको हवा दी है आपने.आपके 'अभिसप्त स्वप्न' की प्रतीछा हम सबको है.इस महान प्रयास के लिए आपको एक बार फिर से हम सब की तरफ से धन्यवाद.
    AWANISH DUBEY & COMPANY

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  2. are tu to gaya
    किसी ने सही में सच ही कहा आखिरी कबीर ही हो तुम

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  3. dhanywad awnish..
    apki apekchaon per khara uterne ke liye hi bazar me aa raha hoon. vagarna........ main kahan jurrat e lab kushayi kahan.

    punah dhanyawad.
    satya vyas

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  4. Kal jise dushyant ne dekha tha cheethrhe pahne hue, Aaj nange bhukhe halaton par rota vo hindustan hai
    Ek ache maksad ke liye likhee gai har rachna ke liye mera sadhuvad. ishwar tumhe aur shakti de. vivek kumar, ek sahitya sewak

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