Sunday, August 16, 2009

तीन वर्ष

BHU college days ॥

ख्याल ए यार कि हर इब्तिदा तो यक सी थी,
नसीम ए सुब्ह, कुछ अख़बार और अवधेश की चाय। (नसीम ए सुब्ह-सुबह की ठंडी हवा)

तुम्हारे साथ गुजारे थे जो बेफिक्री के din,
ना कर वो जिक्र मेरे दोस्त, कि हाय।

लगा करे था कि किसने मजाक कर ड़ाला,
agarche बात पढाई कि कभी आ जाय।

बेसबब बेलौस हंसा करते थे मानिंन्द ए पागल,
के अब तो ढूँढ़ते रहते ही,अमाँ कोई हंसाय।

अता हुए थे जिन्दगी के महज तीन बरस,
जो बच गयी है, सजा है, निपट लिया जाये.
satya a vagrant.......

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